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कैसे करें दिवाली पर मां काली की पूजा..

दिवाली में हम लक्ष्मी मां के साथ-साथ काली मां की भी पूजा करतें हैं। काली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वो असल में सुन्दरी रूप भगवती दुर्गा का काला और डरावना रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिये हुई थी। उनको खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। काली की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से है जो सबको ग्रास कर लेता है।

By Edited By: Published: Fri, 25 Oct 2013 04:16 PM (IST)Updated: Fri, 25 Oct 2013 04:40 PM (IST)
कैसे करें दिवाली पर मां काली की पूजा..

दिवाली में हम लक्ष्मी मां के साथ-साथ काली मां की भी पूजा करतें हैं। काली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वो असल में सुन्दरी रूप भगवती दुर्गा का काला और डरावना रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिये हुई थी। उनको खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। काली की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से है जो सबको ग्रास कर लेता है। काली को देवि दुर्गा की दस महाविद्याओ मे से एक भी माना जाता है।

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पढ़ें: मां काली से जुड़ी सारी खबरें-

भगवती श्री काली परमात्मा की पराशक्ति भगवती निराकार होकर भी देवताओं का दु:ख दूर करने के लिये युग-युग में साकार रूप धारण करके अवतार लेती हैं। उनका शरीर ग्रहण उनकी इच्छा का वैभव कहा गया है। सनातन शक्ति जगदम्बा ही महामाया कही गई हैं। वे ही सबके मन को खींच कर मोह में डाल देती हैं। उनकी माया से मोहित होने के कारण ब्रह्मादि समस्त देवता भी परम तलव को नहीं जान पाते, फिर मनुष्यों की तो बात ही क्या है? वे परमेश्वरी ही सत्त्व, रज और तस- इन तीनों गुणों का आश्रय लेकर समयानुसार सम्पूर्ण विश्व का सृजन, पालन औ संहार किया करती हैं।

इस बार काली पूजन के शुभ मुहूर्त-

2 नवंबर 2013 शनिवार

काली पूजा निशिता समय- 23:56 से 24:47 तक

अवधि - 0 घंटा 50 मिनट

अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 2 नवंबर 2013 को 20:12 से

अमावस्या तिथि समाप्त- 3 नवंबर 2013

तक, 18:19 बजे तक।

दश महाविद्या मे प्रथमा शक्ति काली मां है। काली मां के कई रूप में जैसे महाकाली,शमसान काली,गुहय काली,भद्र काली,काम काली,दक्षिण काली और भी कितने रूप है। सती ने जब शिव को रोकने हेतु अपने रुप का विस्तार किया उसमे काली प्रथम है इस कारण ये आद्या शक्ति है।

श्रीमहाकाली साधना के प्रयोग से लाभ-

महाकाली साधना करने वाले जातक को निम्न लाभ स्वत: प्राप्त होते हैं-

जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने के पश्चात् पतंगा भस्म हो जाता है, उसी प्रकार काली देवी के संपर्क में आने के उपरांत साधक के समस्त राग, द्वेष, विघ्न आदि भस्म हो जाते हैं।

श्री महाकाली स्तोत्र एवं मंत्र को धारण करने वाले धारक की वाणी में विशिष्ट ओजस्व व्याप्त हो जाने के कारणवश गद्य-पद्यादि पर उसका पूर्व आधिपत्य हो जाता है।

महाकाली साधक के व्यक्तित्व में विशिष्ट तेजस्विता व्याप्त होने के कारण उसके प्रतिद्वंद्वी उसे देखते ही पराजित हो जाते हैं। काली साधना से सहज ही सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।

काली का स्नेह अपने साधकों पर सदैव ही अपार रहता है। तथा काली देवी कल्याणमयी भी है। जो जातक इस साधना को संपूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव पूर्वक करता है वह निश्चित ही चारों वगरें में स्वामित्व की प्राप्ति करता है व मां का सामीप्य भी प्राप्त करता है।

साधक को मां काली असीम आशीष के अतिरिक्त, श्री सुख-सम्पन्नता, वैभव व श्रेष्ठता का भी वरदान प्रदान करती है। साधक का घर कुबेरसंज्ञत अक्षय भंडार बन जाता है।

काली का उपासक समस्त रोगादि विकारों से अल्पायु आदि से मुक्त हो कर स्वस्थ दीर्घायु जीवन व्यतीत करता है। काली अपने उपासक को चारों दुर्लभ पुरुषार्थ, महापाप को नष्ट करने की शक्ति, सनातन धर्मी व समस्त भोग प्रदान करती है।

श्रीमहाकाली पाठ-पूजन विधि-

सबसे पहले गणपति का ध्यान करते हुए समस्त देवी-देवताओं को नमस्कार करें। और इन मंत्रों के साथ काली मां की पूजा करें।

1. श्री मन्महागणाधिपतये नम:।।

2. लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:।।

3. उमामहेश्वरा्भ्यां नम:।।

4. वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:।।

5. शचीपुरन्दराभ्यां नम:।।

6. मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नम:।।

7. इष्टदेवताभ्यो नम:।।

8. कुलदेवताभ्यो नम:।।

9. ग्रामदेवताभ्यो नम:।।

10.वास्तुदेवताभ्यो नम:।।

11. स्थानदेवताभ्यो नम:।

12. सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।।

13. सर्वेभ्यो ब्राह्यणेभ्यो नम:।।

ऊं भूर्भुव स्व:।

तत् सवितुर्वरेण्यम्।। भर्गो देवस्य धीमहि।

धियो यो न: प्रचोयदयात्।।

एते गन्धपुष्पे पुष्प अर्पण करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-

ऊं गं गणपतये नम:।

आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नम:।।

ऊं शिवादिपंचदेवताभ्यो नम:।।

ऊं इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नम:।।

ऊं मत्स्यादिदशावतारेभ्यो नम:।।

ऊं प्रजापतये नम:।।

ऊं नमो नारायणाय नम:।।

ऊं सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।।

श्री गुरुवे नम:।।

ऊं ब्रह्माणेभ्यो नम:।।

निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ की मध्यमा में या कलाई पर घास को बांधें-

ऊं कुशासने स्थितो ब्रह्मा कुशे चैव जनार्दन:।

कुशे ह्याकाशवद् विष्णु: कुशासन नमोऽस्तुते।।

आचमन करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-

ऊं केशवाय नम:

ऊं माधवाय नम:।।

ऊं गोविन्दाय नम:।।

ऊं विष्णु: विष्णु: विष्णु;।।

ऊं ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके नम:।

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