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आप इनमें से किस तरह से जीना चाहते है

जब भी तुम प्रेम में हो और आनन्द का अनुभव करते हो, तो तुम्हारा मन वर्तमान में होता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 29 Apr 2016 09:51 AM (IST)Updated: Fri, 29 Apr 2016 10:18 AM (IST)
आप इनमें से किस तरह से जीना चाहते है

- श्रीश्री रविशंकर, आध्यात्मिक गुरु

जीवन को देखने के दो तरीके हैं। पहला यह कि किसी एक उद्देश्य की प्राप्ति के पश्चात मैं सुखी होऊंगा। दूसरा यह कि जो भी हो, मैं सुखी हूं। तुम इनमें से किस तरह से जीना चाहते हो?

सुखी रहने के लिए हम किसी वस्तु की खोज करते हैं, परन्तु उसको प्राप्त करने के बाद भी हम सुखी नहीं रहते हैं। विद्यालय जाने वाला एक छात्र यह सोचता है कि यदि वह विद्यालय जाता है तो वह और अधिक स्वतंत्र, स्वच्छंद और सुखी होगा।

यदि तुम विद्यालय के छात्र से पूछो कि वह सुखी है तो वह यह कहेगा- यदि उसे सेवा या नौकरी मिल जाये, तो वह सुखी होगा। कोई व्यक्ति जो अपने व्यवसाय या सेवायोजन में लगा हुआ है, उससे यदि बात करोगे तो तुम्हें ज्ञात है कि वह क्या कहेगा? वह यह कहेगा कि उसे सुखी रहने के लिए एक जीवनसाथी की आवश्यकता है।

उसे जीवनसाथी मिल जाता है, लेकिन फिर भी उसे सुखी रहने के लिए बच्चों की आवश्यकता होती है। जिन लोगों के बच्चे हैं, उनसे पूछो कि क्या वे सुखी हैं? उन्हें कैसे चैन मिल सकता है, जब तक कि उनके बच्चे बड़े न हो जाएं, अच्छी शिक्षा न प्राप्त करें और स्वयं अपने पैरों पर खड़े न हो जाएं।

जो लोग सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उनसे पूछो कि क्या वे सुखी हैं। वह उन दिनों को याद कर, उन्हें अच्छा कहते हैं, जब वे नौजवान थे। यानी एक व्यक्ति का पूरा जीवन भविष्य में कभी प्रसन्न व सुखी रहने की तैयारी करने में बीत जाता है।

यह उसी तरह से है कि हम रात भर बिस्तर सजाने की तैयारी करते रहें, पर सोने के लिए समय न मिले। आन्तरिक रूप से प्रसन्न होने के लिए हमने अपने जीवन के कितने मिनट, घंटे या दिन बिताए हैं।

केवल वही वे क्षण हैं, जिनमें आपने अपने जीवन को सही मायने में जिया है। शायद वे केवल वही दिन थे, जब तुम एक छोटे बच्चे थे, पूर्णतया प्रसन्नता और आन्नद में या कुछ क्षणों में जब तुम तैर रहे थे या लहरों से खेल रहे थे या किसी पर्वत के शिखर पर बैठे हुए वर्तमान क्षण में जीते हुए उसका आनन्द ले रहे थे।

जीवन को देखने के दो तरीके हैं। पहला यह कि किसी एक उद्देश्य की प्राप्ति के पश्चात मैं सुखी होऊंगा। दूसरा यह कि जो भी हो, मैं सुखी हूं। तुम इनमें से किस तरह से जीना चाहते हो। जीवन 80 प्रतिशत आनन्द है और 20 प्रतिशत दुख है। लेकिन हम उस 20 प्रतिशत को पकड़ कर बैठ जाते हैं और उसे 200 प्रतिशत बना लेते हैं। यह जान बूझ कर नहीं होता है, बस केवल हो जाता है।

आनन्द, सजगता, सतर्कता और दया के क्षणों में जीना दिव्यता की प्राप्ति है। बच्चे की तरह रहना दिव्यता है. यह अपने अन्दर से मुक्त होना तथा प्रत्येक से बिना किसी संकोच के सहज रहना है। दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इस बारे में मत सोचो और इसके अनुसार निर्णय मत करो।

वे जो कुछ भी सोचते हैं, वह स्थायी नहीं है। दूसरे व्यक्तियों तथा वस्तुओं के बारे में तुम्हारी खुद की राय हर समय बदलती रहती है तो फिर दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इसके लिए चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है।

चिन्ता करने से शरीर, मन, बुद्धि और सजगता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। यह वह बाधा है जो हमको अपने-आप से बहुत दूर ले जाती है. यह हमारे अन्दर भय पैदा करती है। भय प्रेम की कमी के अलावा कुछ नहीं है, यह अलगाव की तीव्र चेतना है।

श्वसन क्रियाओं के द्वारा विश्राम से, इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है. तब तुम्हें इस बात का अनुभव होगा, मैं सबका प्यारा हूं, मैं हर व्यक्ति का ही अंश हूं और मैं संपूर्ण ब्रह्मांड का एक अंश हूं. यह तुम्हें मुक्त कर देगा और तुम्हारा मन पूर्ण रूप से बदल जाएगा। तब तुम्हें अपने चारों तरफ अत्यधिक एकरूपता मिलेगी।

जब भी तुम प्रेम में हो, तुम्हारा मन वर्तमान में होता है : एकरूपता पाने के लिए ऐसा नहीं है कि तुम्हें शारीरिक रूप से इसे पाने के लिए कई वर्षों तक कहीं बैठकर साधना करनी हो। जब भी तुम प्रेम में हो और आनन्द का अनुभव करते हो, तो तुम्हारा मन वर्तमान में होता है।

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किसी स्तर पर, किसी मात्रा में प्रत्येक व्यक्ति अनजाने में ध्यान करता है. ऐसे क्षण होते हैं, जब तुम्हारे शरीर, मन और श्वास में एकरूपता होती है, तब तुम योग को प्राप्त करते हो। आर्ट आफ लिविंग (जीवन जीने की कला) वर्तमान क्षण में होती है।

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