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हिमाचल के मंदिरों में पशुबलि पर प्रतिबंध

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य के मंदिरों में होने वाली पशुबलि पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में यह स्पष्ट किया कि हजारों पशुओं को बलि के नाम पर प्रतिवर्ष मौत के घाट उतारा जाता है, जिससे इन पशुओं को असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ती है। न्यायाधीश राजीव शर्मा व न्यायाधीश्

By Edited By: Published: Tue, 02 Sep 2014 09:24 AM (IST)Updated: Tue, 02 Sep 2014 01:18 PM (IST)
हिमाचल के मंदिरों में पशुबलि पर प्रतिबंध

शिमला, राज्य ब्यूरो। हिमाचल हाईकोर्ट ने राज्य के मंदिरों में होने वाली पशुबलि पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में यह स्पष्ट किया कि हजारों पशुओं को बलि के नाम पर प्रतिवर्ष मौत के घाट उतारा जाता है, जिससे इन निर्मम पशुओं को असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ती है।

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न्यायाधीश राजीव शर्मा व न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि देवता को प्रसन्न करने के लिए निर्दोष पशुओं को भयानक मौत देना सही नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह एक सामाजिक कुरीति है, जिसे समाप्त करना अति आवश्यक है। कोर्ट के समक्ष यह तथ्य ध्यान में लाया गया कि बलि के नाम पर पशु को मारने का प्रचलन कुल्लू जिला के निरमंड व आनी क्षेत्र, मंडी, जिला के कमरूनाग, गौड देव, कामाक्षा मंदिर व अन्य मंदिरों में है। शिमला जिला के रामपुर, रोहडू, कोटखाई, झाकड़ी, चिड़गांव व सिरमौर जिला के शिलाई क्षेत्र में भी बकरों व भेड़ों को बलि के नाम पर मारने का प्रचलन है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधुनिक समय में आस्था, धार्मिक पूजा व चली आ रही कुरीति के नाम पर पशुओं को मारना गलत है, जिसे अब बदलना अति आवश्यक है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धार्मिक पूजा के नाम पर कोई भी व्यक्ति पशुओं की बलि नहीं देगा। कोई भी व्यक्ति इस तरह की बलि देने के लिए न तो प्रलोभन देगा और न ही इस तरह के कार्य में शामिल होगा। इस बाबत न किसी भूमि का उपयोग किया जाएगा, न ही किसी भवन में इस तरह की बलि को अंजाम दिया जाएगा। कोर्ट ने प्रदेश के सभी जिलाधीशों पुलिस अधीक्षकों, उप मंडलाधिकारियों व पुलिस थाना प्रभारियों को कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी दी है।

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