भगवान ने ध्रुव को ध्रुव लोक का स्वामी बना, ध्रुव तारे के रूप में आकाश में स्थान दिया
ध्रुव ने कठोर भक्ति की। उसकी भक्ति को देख भगवान नारायण प्रसन्न हुए और उन्होंने ध्रुव को वरदान दिया कि प्रलय भी उसका कुछ न बिगाड़ सकेगा।
राजा मनु और शतरूपा के दो पुत्र थे, नाम था 'प्रियव्रत' और 'उत्तानपाद'। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि दो रानियां थीं। सुनीति के पुत्र थे 'ध्रुव' और सुरुचि के पुत्र थे उत्तम। सुनीति बड़ी रानी थीं। लेकिन राजा उत्तानपाद सुरुचि को पसंद करते थे।
एक दिन जब राजा उत्तानपाद ने सुनीति के पुत्र ध्रुव को गोद में बैठा लिया तब सुनीति ने ध्रुव को नीचे हटाते हुए कहा कि- 'ध्रुव, राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है जो मेरी गर्भ से पैदा हुआ हो। यदि तुम्हारी इच्छा है तो तुम्हें भगवान नारायण का स्मरण करना चाहिए। उनकी ही कृपा से तुम मेरे गर्भ से पैदा हो सकते हो।'
पांच वर्ष का वह अबोध बालक कुछ भी समझ न पाया और अपनी मां सुनीति के पास जाकर रोने लगा। मां सुनीति ने कहा- 'ध्रुव जो अलौकिक सुख देने वाले हैं। ऐसे भगवान नारायण की भक्ति में लीन हो जाओ।'
यह सुनकर ध्रुव भगवान नारायण की भक्ति करने के लिए चल दिए। रास्ते में उनकी भेंट देवर्षि नारद जी से हुई। नारद जी ने ध्रुव का दृढ़ संकल्प को देख 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:' मंत्र की दीक्षा दी।
नारद जी, राजा उत्तानपाद के पास पहुंचे। उन्होंने राजा को आप बीती सुनाई, राजा को अपनी बात का बहुत पछतावा हुआ। लेकिन नारद जी ने कहा, ध्रुव आपके नाम को अमर कर देगा। भविष्य में वह अपने यश के कारण जाना जाएगा। राजा उत्तानपाद को यह बात सुन कर सांत्वना मिली।
ध्रुव ने कठोर भक्ति की। उसकी भक्ति को देख भगवान नारायण प्रसन्न हुए और उन्होंने ध्रुव को वरदान दिया कि प्रलय भी उसका कुछ न बिगाड़ सकेगा। मान्यता है कि ध्रुव को ध्रुव लोक का स्वामी बनाया। उन्होंने ध्रुव को, ध्रुव तारे के रूप में आकाश में स्थान दिया।