गोबिंद सिंह ने अपनी देख-रेख में होली की एक नई परिष्कृत परंपरा आरंभ की
आनंदपुर साहिब में होली पर लाखों सिख जुटते। लोगों पर गुलाब जल और गुलाबी रंगों की वर्षा की जाती। युद्धाभ्यास की खूब डट कर तैयारी की जाती है।
By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 08 Mar 2017 10:55 AM (IST)Updated: Wed, 08 Mar 2017 02:54 PM (IST)
सिखों के दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह ने अपनी देख-रेख में होली की एक नई परिष्कृत परंपरा आरंभ की। उन्होंने इसका नाम होला महल्ला रखा तथा होलगढ़ नामक किला बनवाया, जो होला महल्ला का केंद्र बना। होली के दिन दूर-दूर से सिख संगत आनंदपुर साहिब आती। प्रात: गुरुवाणी का विभिन्न रागों में गायन किया जाता। दोपहर बाद वीरता प्रदर्शित करने वाले खेलों का आयोजन किया जाता।
एकत्रित हुए लोगों पर सुगंधित गुलाब जल और गुलाबी रंगों की वर्षा की जाती। अगले दिन युद्धाभ्यास की खूब डट कर तैयारी की जाती। अंत में उत्सव मनाया जाता और प्रसाद बांटा जाता। गुरु गोबिंद सिंह द्वारा संवत
1757 में आरंभ की गई होला महल्ला की परंपरा आज भी कायम है। पंजाब के आनंदपुर साहिब में हर होली पर लाखों सिख जुटते हैं। यहां गुरुवाणी के विशेष दीवान लगते हैं। सुंदर वस्त्रों में योद्धाओं की तरह सुसज्जित होकर लोग नगर कीर्तन में शामिल होते हैं। यह आलौकिक दृश्य मंत्रमुग्ध कर देता है।
- सत्येंद्र पाल सिंह
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