कुदरत के आंचल में होने का अहसास
धार्मिक और नैसर्गिक पर्यटन की अपार संभावनाएं समेटे अछरीखाल पर्यटन मंत्रालय की उपेक्षा का दंश झेलने को विवश है। विकास के प्रस्ताव विभागीय फाइलों में दम तोड़ चुके हैं। ऐसे में ग्रामीणों के अच्छे दिनों की उम्मीद भी दम तोड़ रही है। मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर पौड़ी-देवप्रयाग मार्ग पर
पौड़ी। धार्मिक और नैसर्गिक पर्यटन की अपार संभावनाएं समेटे अछरीखाल पर्यटन मंत्रालय की उपेक्षा का दंश झेलने को विवश है। विकास के प्रस्ताव विभागीय फाइलों में दम तोड़ चुके हैं। ऐसे में ग्रामीणों के अच्छे दिनों की उम्मीद भी दम तोड़ रही है। मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर पौड़ी-देवप्रयाग मार्ग पर समुद्रतल से करीब 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पर्यटन स्थल अछरीखाल की नैसर्गिक सुरम्यता देखते ही बनती है।
बांज बुरांस के घने जंगलों में पक्षियों का कलरव। कुदरत के आंचल में होने का अहसास कराती देवदार के पेड़ों से आती भीनी-भीनी महक। मीलों दूर तक फैले कुदरत के नजारे और किसी बड़े हाइवे की तरह दिखता अलकनंदा नदी का प्रवाह। सामने पर्वतराज का विहंगम नजारा। और इस सब के बीच शीर्ष पर विराज कर आर्शीवाद देती मां वैष्णोदवी। कुछ इस तरह से अलौकिक है अछरीखाल का सौंदर्य। लेकिन इस सौंदर्य को संवारने में सरकारी मशीनरी की तंगदिली उपहास उड़ाती प्रतीत होती है। स्थानीय लोगों ने किसी तरह मंदिर जाने वाले मार्ग, मां वैष्णो के दर्शन को जाने वाली सुरंग की मरम्मत कराई लेकिन पर्यटन या अन्य विभागों ने सुविधाएं जुटाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली। ऐसे में ग्रामीण भी मायूस हैं।