Move to Jagran APP

कुदरत के आंचल में होने का अहसास

धार्मिक और नैसर्गिक पर्यटन की अपार संभावनाएं समेटे अछरीखाल पर्यटन मंत्रालय की उपेक्षा का दंश झेलने को विवश है। विकास के प्रस्ताव विभागीय फाइलों में दम तोड़ चुके हैं। ऐसे में ग्रामीणों के अच्छे दिनों की उम्मीद भी दम तोड़ रही है। मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर पौड़ी-देवप्रयाग मार्ग पर

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 05 Dec 2014 11:22 AM (IST)Updated: Fri, 05 Dec 2014 11:24 AM (IST)
कुदरत के आंचल में होने का अहसास

पौड़ी। धार्मिक और नैसर्गिक पर्यटन की अपार संभावनाएं समेटे अछरीखाल पर्यटन मंत्रालय की उपेक्षा का दंश झेलने को विवश है। विकास के प्रस्ताव विभागीय फाइलों में दम तोड़ चुके हैं। ऐसे में ग्रामीणों के अच्छे दिनों की उम्मीद भी दम तोड़ रही है। मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर पौड़ी-देवप्रयाग मार्ग पर समुद्रतल से करीब 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पर्यटन स्थल अछरीखाल की नैसर्गिक सुरम्यता देखते ही बनती है।

loksabha election banner

बांज बुरांस के घने जंगलों में पक्षियों का कलरव। कुदरत के आंचल में होने का अहसास कराती देवदार के पेड़ों से आती भीनी-भीनी महक। मीलों दूर तक फैले कुदरत के नजारे और किसी बड़े हाइवे की तरह दिखता अलकनंदा नदी का प्रवाह। सामने पर्वतराज का विहंगम नजारा। और इस सब के बीच शीर्ष पर विराज कर आर्शीवाद देती मां वैष्णोदवी। कुछ इस तरह से अलौकिक है अछरीखाल का सौंदर्य। लेकिन इस सौंदर्य को संवारने में सरकारी मशीनरी की तंगदिली उपहास उड़ाती प्रतीत होती है। स्थानीय लोगों ने किसी तरह मंदिर जाने वाले मार्ग, मां वैष्णो के दर्शन को जाने वाली सुरंग की मरम्मत कराई लेकिन पर्यटन या अन्य विभागों ने सुविधाएं जुटाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली। ऐसे में ग्रामीण भी मायूस हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.