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शंकराचार्य को समर्पित किया गौरा पार्वती मंदिर, 108 शहनाइयों से अभिनंदन

गंगा तट पर सोमवार को 108 शहनाइयों की समवेत तान ने ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का स्वर्णाभिनंदन किया। जगद्गुरु को समर्पित राग गूंजे और खुद धन्य हो उठे। इस सुर राग से सजे अद्भुत आध्यात्मिक नजारे से काशी में स्वाभावत: शांतमना भगवती गंगा भी मानो

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 31 Mar 2015 02:41 PM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2015 02:43 PM (IST)
शंकराचार्य को समर्पित किया गौरा पार्वती मंदिर, 108 शहनाइयों से अभिनंदन

वाराणसी। गंगा तट पर सोमवार को 108 शहनाइयों की समवेत तान ने ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का स्वर्णाभिनंदन किया। जगद्गुरु को समर्पित राग गूंजे और खुद धन्य हो उठे। इस सुर राग से सजे अद्भुत आध्यात्मिक नजारे से काशी में स्वाभावत: शांतमना भगवती गंगा भी मानो लहरा उठी।

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तेज हवाओं की शह रही हो लेकिन इस बहाने ही जाह्नवी झूमती रहीं। महेन्द्र प्रसन्ना के नेतृत्व में सायंकाल 108 शहनाइयां एक सुर हुईं। राग यमन में धुन गूंजी और चैती 'एही ठइयां मोतिया हेराई गयल रामा..Ó भी गुनगुनाई। गंगा के द्वार पर कलाकारों ने उनके लिए बधईया भी बजाई। मोहन लाल दुलारे, अमन, मठरू, भरत लाल, राजेश कुमार समेत 108 कलाकारों ने कला का कमाल दिखाया और विभोर हुए। संचालन कौशल किशोर मयूर ने किया।

जन्मे नंदलाल, झूमी संगत- श्रीमद्भागवत कथा में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की झांकी सजी। बालक रूप में नंदलाल का स्वरूप श्रृंगार किया गया और बच्चों में गुब्बारे, टाफी, बिस्कुट, मिठाई और खिलौने बांटे गए। शंकराचार्य महाराज ने कहा कि जब मनुष्य के जन्म जन्मांतर, युग युगांतर, कल्प कल्पांतर के पुण्य पुंज उदित होते हैं तब भागवत कथा के श्रवण का अवसर मिलता है।

मन को शुद्ध करने के लिए इससे बढ़कर कोई दूसरा साधन नहीं है। कथा व्यास श्याम सुन्दर पाराशर ने प्रभु जन्म की कथा सुनाई। कहा भगवान के जन्म और कर्म दोनों दिव्य होते हैं। गिरीश चंद्र तिवारी यजमान थे।

शंकराचार्य का पादुका पूजन और विरुदावली का पाठ किया गया। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने संचालन किया। भेलूपुर के अवधगर्वी स्थित प्राचीन शिव मंदिर (गौरा पार्वती मंदिर) को श्रद्धालुओं ने जगद्गुरु शंकराचार्य के शिष्य प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को व्यवस्थापन के लिए समर्पित किया। इसके लिए मंदिर व्यवस्था से जुड़े जगन्नाथ जायसवाल, बैजनाथ प्रसाद जायसवाल व काशीनाथ जायसवाल सोमवार को श्रीविद्यामठ पहुंचे। इस मंदिर की व्यवस्था पहले सुजान सावित्री करते थे। उनके निधनोपरांत जगन्नाथ जायसवाल ने सेवा की, अब अस्वस्थ होने से पूजा पाठ सुचारु रूप से नहीं हो पा रहा था।


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