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गणेशजी, महर्षि वेदव्यास की बात को ध्यान से सुन रहे थे

महाभारत को लिखने का श्रेय श्रीगणेशजी को जाता है। जब महाभारत का अंतिम श्लोक महर्षि वेदव्यास के मुख से निकल कर भगवान श्री गणेश के

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 19 Sep 2015 05:25 PM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2015 05:29 PM (IST)
गणेशजी, महर्षि वेदव्यास की बात को ध्यान से सुन रहे थे

महाभारत को लिखने का श्रेय श्रीगणेशजी को जाता है। जब महाभारत का अंतिम श्लोक महर्षि वेदव्यास के मुख से निकल कर भगवान श्री गणेश के भोजपत्र पर अंकित हुआ। तब गणेशजी से महर्षि ने कहा, 'हे विघ्नेश्वर धन्य है आपकी लेखनी महाभारत का सृजन तो लेखनी ने ही किया है।'

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लेकिन एक और वस्तु है जो इससे भी अधिक हैरान करने वाली है। और वह है आपका 'मौन'। लंबे समय तक हमारा साथ रहा। इस अवधि में मैनें तो 15-20 लाख शब्द बोल डाले लेकिन हे देवों में सर्वप्रथम पू्ज्य भगवान गणेश आपके मुख से एक भी शब्द नहीं निकला।

गणेशजी, महर्षि वेदव्यास की बात को ध्यान से सुन रहे थे। उन्होंने कहा, 'किसी दीपक में अधिक तेल होता है। किसी में कम। लेकिन किसी भी दीपक में अक्षय भंडार नहीं होता है। ठीक उसी प्रकार देव, मानव, दानव शरीरधारी हैं। सभी की प्राणशक्ति सीमित है। किसी की ज्यादा। किसी की कम। लेकिन किसी की असीम नहीं।'

इस प्राण शक्ति का पूरा लाभ वही पा सकता है। जो संयम से इसका प्रयोग करता है। संयम ही समस्त सिद्धियों का आधार है। और संयम का सबसे बड़ा गुण है। वाणी पर संयम। जो ज्यादा बोलता है। उसकी जिव्हा अनावश्यक बोलती है।

ऐसे में अनावश्यक शब्द विग्रह(विवाद) पैदा करते हैं। जो हमारी प्राण शक्ति को सोख डालते हैं। इसलिए 'में मौन का उपासक हूं'।


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