गणेशजी ब्रह्म को जानते हैं, इसलिए वे सर्वप्रथम पूज्य हैं
गजानन जी अपने ललाट पर चंद्र को धारण करके उसकी शीतल और निर्मल तेज प्रभा द्वारा दुनिया के सभी जीवों को उपकृत करते हैं। साथ ही यह भाव भी है कि व्यक्ति का मस्तक जितना शांत होगा उतनी कुशलता से वह अपना कर्तव्य निभा सकेगा।
गजानन जी अपने ललाट पर चंद्र को धारण करके उसकी शीतल और निर्मल तेज प्रभा द्वारा दुनिया के सभी जीवों को उपकृत करते हैं। साथ ही यह भाव भी है कि व्यक्ति का मस्तक जितना शांत होगा उतनी कुशलता से वह अपना कर्तव्य निभा सकेगा।
गणेशजी गणों के अधिपति हैं इसलिए अपने ललाट पर चंद्र को धारण करके अपने मस्तक को अतिशय शांत बनाने की आवश्यकता की सीख देते हैं। जो व्यक्ति अपने आप पर नियंत्रण रख पाता है वह जीवन के हर युद्ध में विजयी होता है। मस्तक को शांत रखकर आप ज्यादा जिम्मेदारियां भी उठा सकते हैं।
भालचंद्र स्वरूप का अन्य अर्थ यह है कि चंद्रमा ब्राह्मणों के देवता हैं। इस तरह चंद्रमा ब्रह्म को ज्यादा अच्छे से जानते हैं। चंद्रमा को मस्तक पर धारण करके गणेशजी इस बात की घोषणा करते हैं कि वे ब्रह्म को जानते हैं और इसलिए वे सर्वप्रथम पूज्य हैं।
महत्व- मन को बांधने की सामर्थ्य के देव।