जिम्मेदारी बड़ी मिले तो उसे गंभीरता से निभाना चाहिए
दादा गुरु हरिगोबिंद जी द्वारा स्थापित की गई सभी नीतियों का उन्होंने यथावत पालन किया। उनके काल में भी सिख शस्त्रधारी ही रहे।
सातवें गुरु श्री हरि राय जी का प्रकाश (जन्म) माघ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, सम्वत् 1686 विक्रमी को कीरतपुर साहिब में हुआ था। छठे गुरु हरि गोबिंद जी के सबसे बड़े पुत्र बाबा गुरदित्ता जी उनके पिता थे और माता निहाल कौर जी थीं। हरि राय जी का बचपन कीरतपुर साहिब के प्राकृतिक वातावरण में बीता, इसलिए उनका व्यक्तित्व प्रकृति की तरह ही कोमल, भावुक और संवेदनशील होता चला गया।
एक बार वे एक बड़ा-सा चोला पहन कर फुलवारी में चले गए, जिसमें अटक कर कई फूल झर कर भूमि पर बिखर गए। फूलों का झरना देख कर उन्हें बहुत दुख हुआ। दादा गुरु साहिब ने उन्हें समझाया कि चोला बड़ा हो तो संभालकर चलना चाहिए। यानी जिम्मेदारी बड़ी मिले तो उसे गंभीरता से निभाना चाहिए। उन्होंने छठे गुरु जी की इस सीख को हृदय में धारण कर लिया।गुरु हरिगोबिंद जी देख रहे थे कि उनके पुत्रों में से कोई भी तत्काल गुरुगद्दी की जिम्मेदारी संभालने के योग्य नहीं था। ऐसे में उन्होंने अपने पौत्र हरि राय जी को गुरु-पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए पूर्ण योग्य पाया। इस प्रकार मात्र साढ़े सत्रह वर्ष की आयु में हरि राय जी सप्तम गुरु के रूप में गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। दादा गुरु हरिगोबिंद जी द्वारा स्थापित की गई सभी नीतियों का उन्होंने यथावत पालन किया। उनके काल में भी सिख शस्त्रधारी ही रहे।
उनके पास 2200 सिख सैनिकों की एक बड़ी सेना थी। इन्होंने गुरु मत विरोधी कृत्य करने के लिए कमजोर व्यक्तित्व वाले अपने पुत्र राम राय का त्याग कर दिया था। सप्तम गुरु जी बहुत अच्छे वैद्य भी थे। दयालु प्रवृत्ति का होने के कारण उन्होंने एक दवाखाना खोल रखा था, जहां गरीबों व बीमारों का इलाज मुफ्त किया जाता था। गुरु हरि राय जी कार्तिक कृष्ण पक्ष नवमी सम्वत् 1718 विक्रमी को कीरतपुर साहिब में लगभग 32 वर्ष की उम्र में ज्योति जोत समा गए