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धन का लोभ इतना भी अधिक नहीं होना चाहिए कि हम धन के गुलाम ही बन जाएं

अभिभावकों और विद्यालयों की जिम्मेदारी है सकारात्मक विचारों से बच्चों को प्रेरित करें। बच्चों को अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए जीना सिखाएं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 25 Jan 2017 12:55 PM (IST)Updated: Wed, 25 Jan 2017 01:03 PM (IST)
धन का लोभ इतना भी अधिक नहीं होना चाहिए कि हम धन के गुलाम ही बन जाएं
धन का लोभ इतना भी अधिक नहीं होना चाहिए कि हम धन के गुलाम ही बन जाएं

हमें जीवन देने वाली हमारी प्रकृति पांच तत्वों से मिलकर बनी है। लेकिन आज के आधुनिक-विश्र्व में हमारे जीवन को चलाने के लिए छठे तत्व की अनिवार्य आवश्यकता है। वह तत्व है धन। आज के युग में धन प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए जरूरी है।

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आज की पारिवारिक, सामाजिक और वैश्रि्वक व्यवस्था की कल्पना धन के बिना नहीं की जा सकती है। धन से हम बहुत कुछ पा सकते हैं, किसी को भी बदल सकते हैं, यहां तक कि धन से समय भी खरीदा जा सकता है। कहने को तो हम कह सकते हैं कि धन सब कुछ नहीं, पर धन के बिना भी कुछ भी नहीं। वास्तविकता और व्यावहारिकता यही है कि धन से ही दुनिया चलती है। इस प्रकार धन आज आधुनिक विश्र्व की सकारात्मक जरूरत है। लेकिन अति हर चीज की बुरी होती है।

धन का लोभ इतना भी अधिक नहीं होना चाहिए कि हम धन के गुलाम ही बन जाएं। हम देखते हैं कि कुछ लोगों के मन-मष्तिष्क और कार्य-व्यवहार को धन के लोभ ने इतना जकड़ लिया है कि वह अगर दान-पुण्य भी करते हैं या समाजसेवा भी करते हैं तो उसमें भी अपना फायदा ही देखते हैं। उसमें भी दो से चार बनाने का जुगाड़ देखते हैं या अपने को उच्च साबित करने की कोशिश करते हैं। हमें अपने आपको धन की इस गुलामी भरी सनक से बचाना चाहिए। हम जो भी धन अर्जित करें, उसका कमाने का तरीका सही होना चाहिए। जो धन अपराध, लूटमार, हत्या, भ्रष्टाचार, झूठ-फरेब या आतंक से इकठ्ठा किया जाता है, वह धन मानवता के विनाश का कारण होता है। गलत कायरें से अर्जित धन प्रेम व्यवहार,रिश्ते-नातों को समाप्त कर पारिवारिक, सामाजिक और वैश्रि्वक विनाश का कारण बनता है।

लेकिन आज हम वसुधैव-कुटुम्बकं को भूलकर स्व हित में ही जी रहे हैं। यह विडम्बना है कि आज हम अपनी दौलत से अपनी ही दुनिया उजाड़ रहे हैं। हम अपने लिए स्वयं ही भस्मासुर बन रहे हैं। आखिर हमारे लोभ की सजा क्या यही है? हम दौलत के गुलाम न बनें। आज हमें यह सीखने की आवश्यकता है। हमें अपनी किशोरावस्था से ही समय के मूल्य को सीखना चाहिए, समय को बचाना चाहिए। हमें बहुमूल्य समय और धन दोनों के ही सही उपयोग को सीखना चाहिए। यह न केवल हमें, बल्कि हमारे समाज की भलाई के लिए भी अच्छा है। एक बार अगर ये उत्तम विचार हमारे अन्दर पनपने लगेंगे, तो गलत तरीके से धन कमाने की लालसा, स्वत: ही कम हो जाएगी। अभिभावकों और विद्यालयों की यह जिम्मेदारी है कि वह इस प्रकार के सकारात्मक विचारों से बच्चों को किशोरावस्था से ही प्रेरित करें। बच्चों को अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए जीना सिखाएं।


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