ईष्र्या और भय के कारण चेहरा पीला पड़ जाता है
सच्चा आत्म-विश्लेषण कर इंसान अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना विश्लेषण निष्पक्ष भाव से करना सीखना चाहिए।
मानसिक रूप से वे अपने परिवेश की उद्योगशाला के यंत्र-समान होते हैं। अपनी दिनचर्या वे सिर्फ नाश्ता करने, दोपहर और रात्रि का भोजन करने, अलग-अलग दैनिक कार्यों को करने, सोने तथा मनोरंजन में ही व्यतीत करते हैं। वे नहीं जानते हैं कि वे क्या खोज रहे हैं अथवा क्यों खोज रहे हैं? उन्हें कभी परम संतुष्टि का अनुभव ही नहीं हो पाता है।
सच्चा आत्म-विश्लेषण कर इंसान अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना विश्लेषण निष्पक्ष भाव से करना सीखना चाहिए। अपने विचारों और प्रेरणाओं को यदि वे प्रतिदिन लिखने की आदत डालें, तो बदलाव अवश्यंभावी है। सबसे पहले तो यह जान लेना जरूरी है कि आप वास्तव में हैं क्या? क्या आप स्वयं को वैसा ही बना रहे हैं, जैसा आपको बनना चाहिए? अधिकतर लोग स्वयं को नहीं बदल पाते। इसका कारण यह है कि वे अपने में कभी दोष ढूंढ़ ही नहीं पाते हैं।
मान लीजिए कि अनेक वर्षों से आप दुखांत साहित्य पढ़ते रहे हैं और इसमें आपकी रुचि है। यह साहित्य लगातार पढ़ने के कारण आप चिड़चिड़े बनते जा रहे हैं, तो आपको बदलाव लाना होगा। आपको प्रेरणादायक आध्यात्मिक
पुस्तकें पढ़ने की आदत अपनानी होगी। ऐसा करने से आप अपने जीवन की दिशा बदल सकेंगे। दृढ़ संकल्प होकर आप धीरे-धीरे अपनी पुरानी आदतों को बदल सकते हैं। सच्चे आत्मविश्लेषण में, जब आपको अपनी कमजोरियों का पता चलता है, तो स्वयं को निराशा से ग्रस्त न होने दें। यदि आप ऐसे व्यक्तियों के बीच रहते हैं, जो आपको विक्षुब्ध कर देते हों,तो आपको अपना परिवेश बदल लेना चाहिए।
उससे भी अच्छा तो यह होगा कि आप अपना मानसिक परिवेश बदल लें, जिससे कि आप दूसरों के क्रिया-कलापों से परेशान न हों। कुछ लोग ईष्र्या के कारण बीमार हैं, तो कुछ लोग क्रोध, घृणा और मनोभावों के कारण। वे अपनी आदतों और भावनाओं के शिकार हैं। आप अपने घर को शांति का स्थान बना सकते हैं। दूसरी ओर
स्वयं को बदल लेने से आप कहीं भी शांत और प्रसन्न रह सकते हैं। अपना विश्लेषण करें। सभी भावनाएं शरीर और मन पर प्रतिबिंबित होती हैं।
ईष्र्या और भय के कारण चेहरा पीला पड़ जाता है। प्रेम से यह चमक उठता है। बुरी भावनाएं और विचार आत्मा को भी प्रभावित कर देते हैं। मन सूक्ष्म-जगत और सृष्टि का निर्माता है। जिस प्रकार पानी ठंडा और घनीभूत होकर बर्फ बन जाता है, उसी प्रकार विचार घनीभूत होने से भौतिक रूप धारण कर लेते हैं। विश्व की प्रत्येक
वस्तु विचार का ही भौतिक रूप है। मनुष्य के भौतिक और मानसिक पहलुओं का आपस में गहरा संबंध है। आपके विचार और भावनाएं आपकी शारीरिक स्थिति से प्रभावित होते हैं। यदि आत्मा को इन सभी से अप्रभावित रखना है, तो आत्मविश्लेषण करना ही होगा। यदि आपमें किसी भी प्रकार का अहं भाव है, तो आपको अपनी वास्तविक प्रकृति का विश्लेषण करने का प्रयत्न करना चाहिए और सर्वोत्तम गुणों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। यदि प्रतिदिन आप स्वयं को पिछले दिन से अधिक अच्छे व्यक्ति के रूप में नहीं पाते हैं, तो इसका
मतलब है कि आप पीछे की ओर जा रहे हैं-
स्वास्थ्य, मानसिक शांति यहां तक कि आत्मिक आनंद पाने में। क्यों? क्योंकि आप अपने कार्यों पर पर्याप्त नियंत्रण का अभ्यास नहीं करते हैं।यदि आप गलत ढंग से सोचते रहे हैं, तो अच्छे लोगों की संगति और अध्ययन तथा ध्यान करने का निश्चय करें। संगति का परिवर्तन आप में बहुत अंतर ला सकते हैं। यदि आप निर्भीक होकर
स्वयं का विश्लेषण कर सकें, तो आप दूसरों के द्वारा किया गया आलोचनात्मक विश्लेषण भी बिना झिझक के सहने योग्य हो जाएंगे। जो दूसरों की त्रुटियों के बारे में सोचते रहना पसंद करते हैं, वे मानव गिद्ध के समान हैं। गुलाब की भांति बनें और आत्मिक अच्छाई की मधुर सुगंध को चारों ओर बिखेरें। प्रत्येक व्यक्ति को यह अनुभव
कराएं कि आप उनके मित्र हैं, उनके सहायक हैं,विनाशक नहीं। साथ ही यह भी अनुभव कराएं कि आप ईश्वर के प्रतिबिंब हैं। मात्र अपने शब्दों से नहीं, बल्कि अपने व्यवहार से। प्रकाश पर यदि बल दिया जाता है, तो अंधकार स्वयंमेव समाप्तहो जाता है। इसके लिए अध्ययन करें, ध्यान करें और दूसरों का भला करें।