Move to Jagran APP

विश्वनाथ दरबार में एक महत्वपूर्ण परंपरा धीरे-धीरे टूटने की ओर है

देवाधिदेव महादेव से संगीत का आरंभ माना जाता है, लेकिन उनके ही दरबार में नगाड़े की थाप गुम हो रही है। बाबा दरबार की इस प्राचीन परंपरा को खुद काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन ही पलीता लगा रहा है। हैरत की बात यह कि इसके निमित्त ही गठित न्यास परिषद का

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 13 Jul 2015 11:22 AM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2015 11:50 AM (IST)
विश्वनाथ दरबार में एक महत्वपूर्ण परंपरा धीरे-धीरे टूटने की ओर है

वाराणसी। देवाधिदेव महादेव से संगीत का आरंभ माना जाता है, लेकिन उनके ही दरबार में नगाड़े की थाप गुम हो रही है। बाबा दरबार की इस प्राचीन परंपरा को खुद काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन ही पलीता लगा रहा है। हैरत की बात यह कि इसके निमित्त ही गठित न्यास परिषद का भी इस ओर ध्यान नहीं रहा। ऐसे में एक महत्वपूर्ण परंपरा धीरे-धीरे टूटने की ओर है।

loksabha election banner

वास्तव में बाबा की दोपहर में होने वाली भोग आरती और शाम की श्रृंगार आरती के समय घंटा-घड़ियाल, शहनाई के साथ नगाड़े की थाप गूंजा करती थी। इसकी प्राचीनता की बात करें तो इसके लिए मुगलकाल में किसी शासक ने लगभग छह फीट व्यास का तांबे का बेस युक्त नगाड़ा भेंट किया था। दोनों प्रहर इसकी थाप और शहनाई की तान भी गूंजा करती थी।

महंतों के समय भी बाकायदा इसके लिए कलाकार तैनात किए गए थे। उन्हें तहसील से मानदेय की व्यवस्था थी, हालांकि भक्तिभाव के कारण उसे लेने कोई नहीं गया। वर्ष 1983 में मंदिर अधिग्रहण के बाद भी यह परंपरा जारी रही, लेकिन एक दशक पहले नगाड़े का ऊपरी हिस्सा क्षतिग्रस्त होने के साथ परंपरा में भी ह्रास शुरू हो गया।

कुछ दिनों तक किसी दानदाता द्वारा दिए गए आटोमैटिक नगाड़े से रस्म निभाई जाती रही, लेकिन बहुत दिनों तक उसका भी साथ बरकरार नहीं रहा। अब एक छोटा नगाड़ा रख तो दिया गया है लेकिन बड़ा सवाल कि उसे बजाए कौन। मंदिर के अपर कार्यपालक अधिकारी पीएन द्विवेदी ने बताया कि नगाड़ा वादन के लिए अलग से तैनाती की गई है। इसके बाद भी नगाड़ा नहीं बज रहा तो पता कराते हैं।

शहनाई वादकों पर मढ़ दी जिम्मेदारी

मंदिर में शहनाई वादन के लिए दो दल तैनात हैं, जिन्हें चक्रानुक्रम में एक-एक माह की जिम्मेदारी दी गई है। इन तीन-तीन सदस्यीय दलों को पारी के माह में मानदेय के तौर पर 3500 रुपये दिए जाते हैं। अब उन्हें ही नगाड़ा वादन की भी जिम्मेदारी थमा दी गई। ऐसे में कभी नगाड़े की थाप सुनाई देती है तो कभी शहनाई में ही उलझे रह जाते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.