अहं सच का साथ देने के बजाय, खुद को बचाने में ज्यादा इच्छुक रहता है
अहं या ’मैं‘ पर नियंत्रण हो। ’मैं‘को नियंत्रित कर तमाम समस्याओं से बचते हुए जीवन में खुशी लाई जा सकती है।
आज सड़क पर हों या घर में, बात-बात में हमारा पारा चढ़ जाता है। इसका कारण हमारा अहं या ’मैं‘ पर नियंत्रण न होना है। ’मैं‘को नियंत्रित कर तमाम समस्याओं से बचते हुए जीवन में खुशी लाई जा सकती है।
नकारात्मकता धरती पर एक बीमारी की तरह है, जिससे असंतोष, क्रोध आदि की उत्पत्ति होती है। बाहर जो प्रदूषण है, वही अंदर नकारात्मकता है। नकारात्मकता हर जगह है। वहां भी है, जहां लोगों के पास जरूरत से ज्यादा है। यह आश्चर्यजनक नहीं, क्योंकि समृद्ध दुनिया आकार को महत्व देती है। वह भौतिकता में ज्यादा खोई हुई है। अहं में फंसी हुई है। लोगों का इस बात में विश्वास है कि जिसमें उन्हें खुशी मिलती है, वे उस पर निर्भर हैं। यानी वे रूप या आकार पर निर्भर हैं। रूप यानी अच्छा या बुरा और आकार यानी छोटा या बड़ा। वे इसी को अपनी दुनिया समझ लेते हैं। वे वर्तमान क्षण को हिकारत से देखते हैं।
उनका मानना है कि यह बिगड़ा हुआ है या इसको ऐसा नहीं, वैसा होना चाहिए था। यही कारण है कि वे जीवन की गहरी संपूर्णता को खो देते हैं। अहं से उपजे अस्वीकार से ही वे दुख उठाते हैं। वर्तमान में है संपूर्णता दरअसल, यह संपूर्णता वर्तमान में ही है। संपूर्णता ‘ऐसा होना चाहिए या नहींहोना चाहिए’ से परे है। वह आकार के पार है।
इसलिए वर्तमान क्षण को स्वीकार करें और उस संपूर्णता को पाएं, जो किसी भी आकार से बड़ी और समय से अनछुई है। वर्तमान क्षण को न स्वीकार करने से खुशी कभी आपके पास नहीं आ सकती। खुशी खुद ही आकारहीन होती है और यह स्वयं की चेतना से ही आती है।
अहं को बढ़ने से बचाएं
अहं हमेशा सतर्क और चौकन्ना रहता है, इस बात के प्रति कि वह कहीं कम न हो जाए। जब भी उसे ऐसा लगता
है कि उसका आकार कम हो रहा है, तो अहं को बढ़ाने वाला स्वचालित यंत्र सक्रिय हो जाता है। उसकी कोशिश ‘मैं’
के मानसिक रूप को पुनस्र्थापित करने की होती है। जब कोई मुझ पर दोष लगाता है या मेरी आलोचना करता है, तो अहं को कम होने का अहसास होता है। तो वह तुरंत अपनी सफाई देकर, बचाव या दोष मढ़कर कम होने से बचता है और पुराने रूप में स्थापित करने लगता है। दूसरा व्यक्ति चाहे सही हो या गलत, इससे अहं को कोई फर्क नहीं पड़ता।
अहं सच का साथ देने के बजाय, खुद को बचाने में ज्यादा इच्छुक रहता है। यह ‘मैं’ के मनोवैज्ञानिक रूप का संरक्षण है। यहां तक कि सामान्य बातें, जैसे मान लीजिए, सड़क पर आप जा रहे हैं। किसी गाड़ी का ड्राइवर आप पर गालियों की बौछार कर देता है, तब प्रतिक्रिया में आप भी उस पर बरस पड़ते हैं। जवाब में आपका चिल्लाना अहं को कम होने से बचाने और उसे पुनस्र्थापित करने की स्वचालित प्रक्रिया है। क्रोध ऐसा ही तत्व है, जो आपके अहं को बढ़ाने का काम करता है।
पा सकते हैं अहं पर काबू
एक प्रभावकारी आध्यात्मिक अभ्यास है- सचेत ढंग से अहं को छोटा करना। यह अहं के पुनस्र्थापित होने के प्रयास के बगैर होता है। मैं बुद्ध के इस प्रयोग को करने की सलाह दूंगा। उदाहरण के लिए, जब कोई आप पर
इल्जाम लगाता है या आपको गालियां देता है, तो उसी समय जवाब देने या अपना बचाव करने का प्रयास मत
कीजिए। अपने अहं को छोटा रहने दीजिए। और, जो कुछ आप अंदर महसूस कर रहे हैं, उस पर ध्यान दीजिए। कुछ सेकंड के लिए आप असहज महसूस करेंगे। आपको लगेगा कि आप आकार में छोटे हो गए हैं, लेकिन अभ्यास सधने पर आप अपने अंदर विस्तार महसूस करेंगे। तब आप एक अभूतपूर्व अनुभव करेंगे। वह अनुभव यह होगा कि जब आप छोटे बने रहते हैं और उस पर प्रतिक्रिया रहित रहते हैं, तो आप भीतर से यह महसूस करेंगे कि आप वास्तव में कम होने के बजाय बढ़ गए हैं। जब आप अपना बचाव या अपने आकार को बड़ा करने की कोशिश नहीं करते, तब आप अपनी मानसिक आत्मछवि से बाहर निकल आते हैं। तब असली शक्ति चमक
सकती है। यही जीसस का तात्पर्य था, जब उन्होंने कहा, अपने को वंचित करो या अपना दूसरा गाल दो।
पहाड़ नहीं, घाटी बनें इसका मतलब यह नहीं है कि आप लोगों को स्वयं को गाली देने या पीड़ित करने के लिए आमंत्रित करें। कभी-कभी परिस्थिति आपसे अपेक्षा कर सकती है कि आप किसी को साफ शब्दों में पीछे हटने को कहें, लेकिन अहं के बिना। तब आपके शब्दों के पीछे ताकत होगी। कोई प्रतिक्रिया बल नहीं होगा।
ताओ ते चिंग के प्राचीन उपदेश पहाड़ बनने के बजाय घाटी बनने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार आप संपूर्णता को प्राप्त होते हैं और ऐसे में सभी वस्तुएं आपके पास आएंगी। इसी प्रकार जीसस एक दृष्टांत के जरिए यह समझाते हैं कि जब कोई आपको आमंत्रित करता है, तो जाइए और सबसे नीची जगह पर बैठिए, ताकि मेजबान आपसे खुलकर बोल सके। दोस्त आगे बढ़िए। तब आपका सम्मान उन सबकी उपस्थिति में बढ़ेगा,
जो आपके साथ आकर बैठेंगे। और हर कोई जो अपने को ऊंचा दिखाता है, वह हीन बनेगा और जो अपने को हीन बनाता है, वह ऊं चा होगा।