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प्रेम पाने के लिए त्याग व समर्पण दोनों की आवश्यकता होती

प्रेम के संदर्भ में एक छोटे से दोहे में संत कबीरदास ने बड़े ही मर्म की बात कही है, जिसका आशय है, 'प्रेम खेत (बाड़ी) में नहीं उपजता, न वह बाजार (हाट) में ही बिकता है, बल्कि वह सर्वत्र विद्यमान है। राजा या प्रजा या फिर धनवान या निर्धन (साधारण मनुष्य) यदि चाहे, तो वह प्रेम को विनम्रता से प्राप्त कर सकता है। वस्तुत: जीवन को सुखमय बनाने का एकम

By Edited By: Published: Sat, 03 May 2014 12:20 PM (IST)Updated: Sat, 03 May 2014 05:26 PM (IST)
प्रेम पाने के लिए त्याग व समर्पण दोनों की आवश्यकता होती

प्रेम के संदर्भ में एक छोटे से दोहे में संत कबीरदास ने बड़े ही मर्म की बात कही है, जिसका आशय है, 'प्रेम खेत (बाड़ी) में नहीं उपजता, न वह बाजार (हाट) में ही बिकता है, बल्कि वह सर्वत्र विद्यमान है। राजा या प्रजा या फिर धनवान या निर्धन (साधारण मनुष्य) यदि चाहे, तो वह प्रेम को विनम्रता से प्राप्त कर सकता है।

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वस्तुत: जीवन को सुखमय बनाने का एकमात्र साधन पारिवारिक व सामाजिक प्रेम और सौहार्द है।

प्रेम पाने के लिए त्याग और समर्पण दोनों की आवश्यकता होती है। माता को अपने शिशु का प्रेम पाने के लिए उसे नौ महीने तक विभिन्न कष्टों व संकटों के साथ पेट में सुरक्षित पालना पड़ता है। विद्यालय में शिक्षकों को अपने छात्रों का प्रेम पाने के लिए तमाम प्रयास करने पड़ते हैं। वे विभिन्न शैक्षिक तरीकों से उन्हें पढ़ाते-लिखाते रहते हैं। इसी तरह घर में बुजुर्ग अभिभावकों को बच्चों और परिजनों का प्रेम पाने के लिए उन्हें धैर्य धारण करते हुए शांत चित्त होकर सभी की बातें सुननी पड़ती हैं। तभी उन्हें परिवार का प्रेम मिलता है। लगभग इसी तरह एक पति को पत्‍‌नी का प्रेम पाने के लिए उसकी अनेक बातें माननी पड़ती हैं। इतना ही नहीं, भगवान को भी भक्त का मन रखने के लिए झूठे बेर खाने पड़ते हैं। कृष्ण को विदुर के घर साग खाना पड़ा था और गुरु नानकदेव दूर गांव में जाकर अपने भक्त के घर सूखी रोटी खाना पसंद करते थे। राणा प्रताप ने भी प्रेम की खातिर सूखी घास की रोटी हर्षित होकर खायी थीं।

धर्म, शास्त्र, इतिहास, साहित्य, दर्शन और मनोविज्ञान प्रेम की इसी भित्ति पर टिके हैं। जीवन का अखंड सौंदर्य इसी प्रेम से नि:सृत हुआ है। जीवन में भक्ति, ज्ञान, सौंदर्य और माधुर्य, दृश्य और श्रव्य, चिंतन और विचार आदि इन सभी के मूल में प्रेम का यही पवित्र और नैसर्गिक रूप सामने आता है। निराशा के दुखमय क्षणों में आशा की कनक किरण सजाता है प्रेम। सचमुच जीवन के लिए जरूरी है प्रेम। यह प्रेम निश्चित तौर पर अमृतमयी संजीवनी है। पशु-पक्षी, मनुष्य, कीट-पतंगे, पेड़-पौधों के अंतस में भी प्रेम का भाव उमड़ता है। प्रेम जीवन का सुख है, आनंद है, सौंदर्य है। प्रेम का प्रभाव उमड़ता है। इसलिए प्रेम को गलत अर्थ में न ग्रहण करें।


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