बदरीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद
शीतकाल के लिए श्री बदरीनाथ धाम के कपाट देर शाम बंद कर दिए गए। सुबह छह बजे शुरू हुआ धार्मिक अनुष्ठान शाम 7.3
बदरीनाथ। शीतकाल के लिए श्री बदरीनाथ धाम के कपाट देर शाम बंद कर दिए गए। सुबह छह बजे शुरू हुआ धार्मिक अनुष्ठान शाम 7.38 बजे कपाट बंद होने के साथ संपन्न हुए। इसके बाद कुबेर जी की उत्सव मूर्ति को बामणी गांव स्थित नंदा देवी मंदिर, उद्धव जी की उत्सव मूर्ति को रावल निवास व गरुड़ मूर्ति को खजाने के साथ रखा गया।
मंगलवार को सुबह दस बजे भगवान की उत्सव डोली योगध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर के लिए रवाना होगी। अब सर्दियों में अगले छह माह तक भगवान बदरीनाथ की पूजा-अर्चना पांडुकेश्वर में की जाएगी। इस दौरान करीब पांच हजार श्रद्धालुओं ने भगवान के दर्शन किए।सोमवार सुबह सबसे पहले बदरीनाथ के मुख्य पुजारी रावल केशव प्रसाद नंबूदरी ने भगवान नारायण के स्वर्ण आभूषण हटाकर फूलों से श्रृंगार किया। इस दौरान धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल व वेदपाठी मंत्रोच्चार करते रहे। पुष्प श्रृंगार से पहले भगवान की महाभिषेक पूजा व आपदा में मारे गए लोगों की आत्मशांति के लिए विशेष गीता पाठ किया गया।
शाम चार बजे से सांयकालीन आरती शुरू हुई। सांय ठीक छह बजे मुख्य पुजारी रावल केशव प्रसाद नंबूदरी ने स्त्री वेश धारण कर लक्ष्मी मंदिर से मां लक्ष्मी को सखी रूप में बाहों में उठाकर गर्भगृह में भगवान नारायण के साथ विराजित किया। इसके बाद भगवान की शयन आरती हुई और उन्हें माणा गांव की सुहागिन महिलाओं व कुंआरी कन्याओं की बनी घी लगी ऊन की चोली पहनाई गई। इसी चोली को कपाट खुलने पर श्रद्धालुओं को मुख्य प्रसाद के रूप में दिया जाएगा। आप दा के चलते इस यात्रा सीजन में श्रद्धालुओं की संख्या अपेक्षा से कम रही। बावजूद इसके चार लाख 97 हजार यात्रियों ने ही बदरीनाथ के दर्शन किए।
हालांकि गतवर्ष नौ लाख 89 हजार लोगों ने दर्शन किए थे। इस अवसर पर बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष गणोश गोदियाल, उपाध्यक्ष मधु भट्ट, विधायक राजेन्द्र भंडारी, सीईओ मंदिर समिति बीडी सिंह, उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार, आदि मौजूद रहे।
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