Move to Jagran APP

शास्त्रों के अनुसार श्रीराम और सीता जी विवाह से पहले मिल चुके थे

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान राम का विवाह इसी तिथि को हुआ था। राम विवाह का जो प्रसंग तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है उसके अनुसार भगवान श्रीराम और सीता जी विवाह से

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2015 12:40 PM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2015 02:38 PM (IST)
शास्त्रों के अनुसार श्रीराम और सीता जी विवाह से पहले मिल चुके थे

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान राम का विवाह इसी तिथि को हुआ था। राम विवाह का जो प्रसंग तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है उसके अनुसार भगवान श्रीराम और सीता जी विवाह से पहले जनकपुर के पुष्प वाटिका में मिल चुके थे। जनकपुर वर्तमान में नेपाल में स्थित है। भगवान श्री राम और गुरू विशिष्ठ की आज्ञा से पूजा हेतु वाटिका से फूल लाने गये थे। माता सीता भी उस समय वाटिका में मौजूद थीं।

loksabha election banner

जब राम और सीता ने एक दूसरे को देखा तो एक दूसरे के प्रति मोहित हो गये। सीता ने उसी क्षण राम को पति रूप में स्वीकार कर लिया। सीता इस बात से चिंतित थीं कि पिता द्वारा रखी गयी शिव धनुष भंग की शर्त को किसी और ने पूरा कर दिया तो राम उन्हें पति रूप में नहीं प्राप्त होंगे। अपने मन की चिंता को दूर करने के लिए सीता अपनी अराध्य देवी मां पार्वती की शरण में गयी।

तुलसीदास जी ने लिखा है कि सीता की मनोदशा को समझकर माता पार्वती उन्हें समझाती हैं कि राम साक्षत परमेश्वर हैं। यह सब की मनोदशा को समझते हैं। भगवान श्री राम ने ही शिव को मुझ से विवाह के लिए प्रेरित कर मेरी तपस्या को सफल किया इसलिए तुम भी मन से चिंता निकाल दो। राम ही तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। तुलसीदास जी ने इस संदर्भ को इस प्रकार दोहे में स्पष्ट किया है। 'करूणानिधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।' पार्वती ने सीता को समझाया कि श्रीराम करूणानिधान और शीलवान और सर्वज्ञ हैं। वह सब जानते हैं। ऊपर से मेरा आशीर्वाद है कि 'पूजहि मन कामना तुम्हारी' 'सो बरू मिलिहि जाहिं मनु राचा'। पार्वती जी कहती हैं कि तुमने मन में जिसे बिठाकर पूजा की है वही सहज, सुन्दर, सांवरा वर तुम्हें प्राप्त होगा। पार्वती जी द्वारा कहे गये शब्दों को ध्यान में रखकर सीता ने तय किया कि वह श्री राम को करूणानिधान के नाम से ही पुकारेंगी। मां सीता प्रभु श्री राम को इसी नाम से बुलाती थीं। कथा है कि सीता की ख़बर लेने के लिए जब हनुमान जी लंका जाने लगे तब श्री राम ने हनुमान को अपने पास बुलाकर कहा कि मेरी मुद्रिका सीता को देना इससे वह तुम्हें मेरा दूत मान लेगी। तब हनुमान ने शंका जताई कि अगर इससे भी न मानी सीता माता तो क्या करूं। इस पर श्री राम ने हनुमान जी से कहा कि सीता मुझे करूणानिधान के नाम से बुलाती है, यह बात सिर्फ मुझे मालूम हैं। यह बात तुम सीता को कहना की आपके करूणानिधान ने यह मुद्रिका दी है तो सीता पूर्ण विश्वास कर लेगी और तुम्हें मेरा दूत मान लेगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.