क्यों शनिवार को चढ़ाते हैं शनि देवता को तेल
इसी कारण शनिदेव ने कहा कि जो मनुष्य मुझे सच्चे मन से तेल चढ़ाएगा। मैं उसकी सभी पीड़ा हर लूंगा और सभी मनोकामनाएं पूरी करूंगा।
By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 23 Feb 2017 04:14 PM (IST)Updated: Sat, 25 Feb 2017 10:35 AM (IST)
शनिवार के दिन शनि देवता को तेल चढ़ाना शुभ माना जाता है। शनिदेव को कर्मों का फल देना वाला ग्रह माना गया है। आपने सोचा है कि आखिर क्यों शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता है? पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि रावण अपने अहंकार में चूर था और उसने अपने बल से सभी ग्रहों को बंदी बना लिया था। शनिदेव को भी उसने बंदीग्रह में उल्टा कर लटका दिया था। उसी समय हनुमानजी प्रभु राम के दूत बनकर लंका पहुंचे। रावण ने अहंकार में आकर हनुमाजी की पूंछ में आग लगवा दी।
रावण की इस हरकत से क्रोधित होकर हनुमानजी ने पूरी लंका जला दी और सारे ग्रह आजाद हो गए, लेकिन उल्टा लटका होने के कारण शनि के शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी और वह दर्द से कराह रहे थे। शनि के दर्द को शांत करने के लिए हुनमानजी ने उनके शरीर पर तेल से मालिश की थी और शनि को दर्द से मुक्त किया था। उसी समय शनि ने कहा था कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उसे सारी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। तभी से शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई थी।
शनिवार का दिन शनिदेव का दिन होता है इसिलए माना जाता है कि इस दिन शनिदेव पर तेल चढ़ाने से जल्द आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
शनिदेव को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। शनिदेव ही एक ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ डर से करते हैं। इसका कारण है कि शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है। सभी नौ ग्रहों में सिर्फ़ शनि ही हमारे कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं। इसलिए उन्हें खुश करने के लिए लोग तेल चढ़ाते हैं। दरअसल, जिनके कर्म पवित्र होते हैं, शनिदेव उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं और जिनके कर्म बुरे होते हैं, उन्हें शनि भगवान का कोपभाजन बनना पड़ता है
हिंदू धर्म के अनुसार, माना जाता है कि शनि भगवान को तेल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि अगर आापको साढ़े साती या ढय्या लगी हो, तो हर शनिवार के दिन शनि मंदिर में जाकर सरसों का तेल और काले तिल चढ़ाने चाहिए। इससे आपको शनि भगवान की कृपा मिलती है।
पुराणों में प्रचलित दूसरी कथा का संबंध रामायण काल से है। कथा अनुसार, कहा जाता है कि रामायण काल में एक समय शनि देव को अपने बल और पराक्रम पर घमंड हो गया था। उस वक़्त हनुमान जी के बल और पराक्रम की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी।जब शनि देव को भगवान हनुमान के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई तो शनि देव भगवान हनुमान से युद्ध करने के लिए निकल पड़े।
कहते हैं कि जब एक शांत स्थान पर हनुमानजी अपने स्वामी श्रीराम की भक्ति में लीन बैठे थे, तभी वहां शनिदेव आ गए और उन्होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा।लेकिन शनिदेव के क्रोध का कारण हनुमान जी समझ चुके थे, इसलिए उन्होंने युद्ध को स्वीकारने के बजाय शनिदेव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन शनिदेव थे कि मानने को तैयार ही नहीं थे।अंत में भगवान हनुमान भी युद्ध के लिए तैयार हो गए। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ, जिसके अंत में परिणाम स्वरूप शनि देव की हार हुई।
कहा जाता है कि युद्ध के दौरान हनुमानजी ने शनि देव पर ऐसे तीखे प्रहार किए जिस कारण शनिदेव के शरीर पर काफी घाव बन गए। वह पीड़ा उनसे सहन नहीं हो रही थी। इसके बाद हनुमान जी ने शनिदेव को तेल लगाने के लिए दिया। जिससे उनका पूरा दर्द गायब हो गया। इसी कारण शनिदेव ने कहा कि जो मनुष्य मुझे सच्चे मन से तेल चढ़ाएगा. मैं उसकी सभी पीड़ा हर लूंगा और सभी मनोकामनाएं पूरी करूंगा।
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