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स्‍नान ध्‍यान के साथ वासुदेव द्वादशी पर ऐसे करें पूजा

भगवान कृष्‍ण भगवान विष्‍णू के सबसे ज्‍यादा पूजे जाने वाले अवतारों में से एक हैं। वासुदेव द्वादशी पर श्रीकृष्‍ण के साथ भगवान विष्‍णू की भी पूजा की जाती है।

By prabhapunj.mishraEdited By: Published: Tue, 04 Jul 2017 02:11 PM (IST)Updated: Tue, 04 Jul 2017 02:11 PM (IST)
स्‍नान ध्‍यान के साथ वासुदेव द्वादशी पर ऐसे करें पूजा

अषाढ़ की द्वादशी को होता है वासुदेव द्वादशी व्रत

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वासुदेव द्वादशी भगवान कृष्‍ण को सर्मिपत है। यह देवसयानी एकादशी के एक दिन बाद मनाई जाती है। यह अषाढ़ के महीने में और चतुर मास के शुरुआत में मनाई जाती है। इस दिन श्रीकृष्‍णा के साथ भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है। अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और अश्विन मास में जो भी यह पूजा करता है उसे मोक्ष की प्राप्‍ति होती है। यह व्रत आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वादशी पर करना चाहिए। इसमें देवता वासुदेव की पूजा, और वासुदेव के विभिन्न नामों एवं उनके व्यूहों के साथ पाद से सिर तक के सभी अंगों का पूजन होता है। 

वासुदेव और माता देवकी ने किया था ये व्रत

सबसे पहले जलपात्र में रखकर तथा दो वस्त्रों से ढककर वासुदेव की स्वर्णिम प्रतिमा का पूजन तथा उसका दान करना चाहिए। यह व्रत नारद द्वारा वसुदेव एवं देवकी को बताया गया था। इसके करने से कर्ता के पाप कट जाते हैं। उसे पुत्र की प्राप्ति होती है या नष्ट हुआ राज्य पुन: मिल जाता है। सुबह सबसे पहले नहाने के बाद साफ कपड़े पहनने चाहिये। आप को पूरे दिन व्रत रहना होगा। भगवान को आप हाथ के पंखे, लैंप के साथ फल फूल चढ़ाने चाहिये। भगवान विष्‍णू की पंचामृत से पूजा करनी चाहिये। उन्‍हें भोग लगाना चाहिये। इस दिन विष्‍णु सहस्‍त्रनाम का जाप करने से आप की हर समस्‍या का समाधान होगा। 


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