कहते हैं, जो काल भैरव की शरण में जाता, वह शिव के परमधाम कैलाश पर प्रस्थान करता है
श्री काल भैरवाष्टमी का व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 3 दिसंबर यानी गुरुवार के दिन है। पुराणों के अनुसार भैरव भगवान शिव का दूसरा रूप हैं। भैरव का वाहन श्वान है। भैरव का अर्थ होता है भयानक और पोषक, इनसे काल भी सहमा
श्री काल भैरवाष्टमी का व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 3 दिसंबर यानी गुरुवार के दिन है। पुराणों के अनुसार भैरव भगवान शिव का दूसरा रूप हैं।
भैरव का वाहन श्वान है। भैरव का अर्थ होता है भयानक और पोषक, इनसे काल भी सहमा सहमा रहता है। इस दिन भगवान शिव के अंश से काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। भैरव संहार के देवता हैं।
ऐसे करें व्रत
व्रत का संकल्प लेने से पहले भगवान शिव का पूजन करें। मंदिर में जाकर रात्रि जागरण करें। भैरव के वाहन श्वान को दूध, दही, मिठाई आदि खिलाएं। कीर्तन करें, रात्रि जागरण करते समय विधि विधान से पूजा करें और काल भैरव की कथा सुनें।
व्रत की कथा
विश्व का कारण और परम तत्व कौन है ? इस प्रश्न को लेकर एक बार ब्रह्मा और विष्णु में बहस हो गई। दोनो अपने आप को ही सर्वश्रेष्ठ कहने लगे। महर्षियों से जब इस बात को लेकर संवाद हुआ तो विष्णु जी ने तो मान गए कि इस धरा पर परम सत्य मौजूद है लेकिन ब्रह्मा जी ने इस बात को नहीं मान रहे थे।
परम तत्व की अवज्ञा करना बहुत बड़ा पाप है। यह बात भगवान शिव को ठीक नहीं लगी और उन्होंने काल भैरव को अपने अंश से उत्पन्न किया। तब ब्रह्मा जी का गर्व नष्ट हो गया।
भैरवाष्टमी हमें काल का भय दिलाती है। कहते हैं जो काल भैरव की शरण में जाता है। वह अंत में भगवान शिव के परमधाम कैलाश पर प्रस्थान करता है। काल भैरव सदा धर्मसाधक शांत तितिक्षु तथा सामाजिक मर्यादाओं का पालन करने वाला की काल से रक्षा करते हैं।