जो इस व्रत को करता हैं उन पर सूर्यदेव की कृपा रहती व वह व्यक्ति निरोगी रहता है
माघ शुक्ल सप्तमी को आती है 'अचला सप्तमी'। इस वर्ष यह 14 फरवरी यानी रविवार के दिन है। इस दिन स्त्रियां सूर्य नारायण का व्रत करती हैं। इसलिए इसे सौर सप्तमी भी कहते हैं। सौभाग्य देने वाले इस व्रत में एक समय भोजन कर सूर्य-नारायण की पूजा अर्चना करने का
माघ शुक्ल सप्तमी को आती है 'अचला सप्तमी'। इस वर्ष यह 14 फरवरी यानी रविवार के दिन है। इस दिन स्त्रियां सूर्य नारायण का व्रत करती हैं। इसलिए इसे सौर सप्तमी भी कहते हैं। सौभाग्य देने वाले इस व्रत में एक समय भोजन कर सूर्य-नारायण की पूजा अर्चना करने का विधान है।
दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर पहले भगवान सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बनाकर मध्य में शिव-पार्वती की स्थापना कर पूजन करें। पूजा के बाद तांबे के बर्तन से दीन-दुखियों को अक्षत यानी चावल का दान करना चाहिए।
व्रत की कथा: प्राचीन काल में इंदुमति नाम की एक वेश्या थी। उसने ऋषि वशिष्ठ के पास जाकर कहा, हे ऋषिवर मैं आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं कर पाईं हूं। मुझे डर है कि मेरी मृत्यु के बाद मुझे कैसे मुक्ति मिलेगी।
ऋषि ने उस वेश्या से कहा, स्त्रियों को सौभाग्य देने वाला व्रत अचला सप्तमी है। यह माघ शुक्ल सप्तमी के दिन आता है। यदि आप इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करेंगी तो आपको मुक्ति जरूर मिलेगी। इस तरह उस वेश्या ने पूरे विधि-विधान से इस व्रत को किया और उसे अंत में स्वर्गलोक प्राप्त हुआ। यह व्रत स्त्रियों के लिए विशेष रूप से करना चाहिए।
भविष्य पुराण में अचला सप्तमी व्रत का महत्व को बताया गया है। इस पुराण के अनुसार श्री कृष्ण कहते हैं, जो भी जातक अचला सप्तमी के व्रत को करते हैं उन पर सूर्य देव की कृपा बनी रहती है। वह व्यक्ति निरोगी रहता है। मान्यता है कि अचला सप्तमी का व्रत करने पर वर्ष भ्रर के सभी रविवार का व्रत करने से जो पुण्य मिलता है वह प्राप्त होता है।