शिव व पार्वती की असीम कृपा देता ये व्रत सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है
शक्तिरूपा पार्वती माता की कृपा प्राप्त करने के लिए सौभाग्य वृद्धिदायक गौरी तृतीया व्रत करने का विचार शास्त्रों में बताया गया है। इस वर्ष यह व्रत 11 फरवरी को किया जाना है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन इस व्रत को किया जाता है। शुक्ल तृतीया को
शक्तिरूपा पार्वती माता की कृपा प्राप्त करने के लिए सौभाग्य वृद्धिदायक गौरी तृतीया व्रत करने का विचार शास्त्रों में बताया गया है। इस वर्ष यह व्रत 11 फरवरी को किया जाना है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन इस व्रत को किया जाता है। शुक्ल तृतीया को किया जाने वाला यह व्रत शिव एवं देवी पार्वती की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए जाना जाता है। विभिन्न कष्टों से मुक्ति एवं जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करने के लिए इस व्रत की महिमा का बखान पूर्णरूप से प्राप्त होता है। इस व्रत का उद्धापन कर देना चाहिए। सच्चे मन एवं पूरे विधिविधान से इस व्रत को करने से विधिदेवी गौरी सभी की मनोकामना पूर्ण करती हैं।
व्रत का फल
यह व्रत स्त्रियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। पावन तिथि स्त्रियों के लिए सौभाग्यदायिनी मानी जाती है। सुहागिन स्त्रियां पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए इस दिन आस्था के साथ व्रत करती हैं। अविवाहित कन्याएं भी मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं।
पूजा की विधि
इस दिन प्रात:काल स्नान आदि कर देवी सती के साथ भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए। पंचगव्य और चंदन निर्मित जल से देवी सती और भगवान शिव की प्रतिमा को स्नान कराना चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य तथा नाना प्रकार के फल अर्पित कर पूजा करनी चाहिए। इस दिन इन व्रत का संकल्प सहित प्रारंभ करना चाहिए।1पूजन में श्री गणोश पर जल, रोली, मौली, चंदन, सिंदूर, लौंग, पान, चावल, सुपारी, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं। गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करवा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चंदन, सिंदूर, मेहंदी, लगाते हैं। श्रृंगार की वस्तुओं से माता को सजाया जाता है। शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन कर गौरी तृतीया की कथा सुनी जाती है और गौरी माता को सुहाग की सामग्री अर्पण की जाती है।
गौरी तृतीया व्रत कथा
गौरी तृतीया शास्त्रों के कथन अनुसार इस व्रत और उपवास के नियमों को अपनाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। स्त्रियों को दांपत्य सुख व संतान सुख की प्राप्ति कराता है। गौरी तृतीया व्रत की महिमा के संबंध में पुराणों में
उल्लेख प्राप्त होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दक्ष को पुत्री रूप में सती की प्राप्ति होती है। सती माता ने भगवान शिव को पाने के लिए जो तप और जप किया उसका फल उन्हें प्राप्त हुआ। माता सती के अनेकों नाम हैं।
इसमें से गौरी भी उन्हीं का एक नाम है। शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को भगवान शंकर के साथ देवी सती विवाह हुआ था। अत: माघ शुक्ल तृतीया के दिन उत्तम सौभाग्य की कृपा प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया जाता है।
यह व्रत सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है।