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मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो दान करता, मृत्युपरांत स्वर्ग में उसे पुन: प्राप्त होता

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कही जाती है। इस दिन यदि कृत्तिका नक्षत्र हो तो यह 'महाकार्तिकी' होती है, भरणी नक्षत्र होने पर विशेष रूप से फलदायी होती है और रोहिणी नक्षण होने पर इसका महत्व बहुत ही अधिक बढ़ जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2015 11:27 AM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2015 11:40 AM (IST)
मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो दान करता, मृत्युपरांत स्वर्ग में उसे पुन: प्राप्त होता

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कही जाती है। इस दिन यदि कृत्तिका नक्षत्र हो तो यह 'महाकार्तिकी' होती है, भरणी नक्षत्र होने पर विशेष रूप से फलदायी होती है और रोहिणी नक्षण होने पर इसका महत्व बहुत ही अधिक बढ़ जाता है।

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विष्णु भक्तों के लिए यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन संध्याकाल में भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्यावतार हुआ था। भगवान को यह अवतार वेदों, प्रलय के अंत तक सप्त ऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा 25 नवंबर यानी बुधवार के दिन है।

इस तिथि को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि का दिन भी माना जाता है। इस दिन किए जाने वाले स्नान, दान, हवन, यज्ञ व उपासना का अनंत फल प्राप्त होता है। इस दिन सत्यनारायण की कथा सुनी जाती है।

सायंकाल देवालयों, मंदिरों, चौराहों और पीपल व तुलसी वृक्ष के सम्मुख दीये जलाए जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर चूंकि जलाशय में स्नान का विशेष महत्व है तो इस दिन नदियों किनारे बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होकर स्नान करते हैं और श्री हरि का स्मरण करते हैं।

यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरुक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होते हैं तो फिर वे कार्तिक शुक्ल एकादशी को उठते हैं और पूर्णिमा से वे कार्यरत हो जाते हैं। यही वजह है कि दीपावली को लक्ष्मीजी का पूजन बिना विष्णुजी के श्रीगणेश के साथ किया जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन जो भी दान किया जाता है उसका कई गुना पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन अन्ना, धन व वस्त्र दान का विशेष महत्व है। मान्यता तो यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो भी दान करता है वह मृत्युपरांत स्वर्ग में उसे पुन: प्राप्त होता है।

सभी सुखों व ऐश्वर्य को प्रदान करने वाली कार्तिक पूर्णिमा को की गई पूजा और व्रत के प्रताप से हम ईश्वर के और करीब पहुंचते हैं। इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा से प्रतिष्ठा प्राप्ति होती है, शिवजी के अभिषेक से स्वास्थ्य और आयु में बढ़ोतरी, दीपदान से भय से मुक्ति और सूर्य आराधना से लोकप्रियता और मान सम्मान की प्राप्ति होती है।

कृष्ण ने किया स्नान-दीपदान

कार्तिक पूर्णिमा पर उत्तरप्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ में स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद अपने परिजनों के शव देखकर युधिष्ठिर बहुत शोकाकुल हो उठे। पाण्डवों को शोक से निकालने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गढ़मुक्तेश्वर में आकर मृत आत्माओं की शांति के लिए यज्ञ और दीपदाद किया। तभी से इस जगह पर स्नान और दीपदान की परंपरा शुरू हुई।

पूर्णिमा पर शिव हुए त्रिपुरारी

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नाम के असुर का अंत किया था और भगवान विष्णु ने उन्हें त्रिपुरारी कहा।

इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति को ज्ञान और धन की प्राप्ति होती है। इस दिन चंद्रमा उदय के समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिवजी प्रसन्ना होते हैं। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान का फल मिलता है।

सिख संप्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। नानकदेव सिखों के पहले गुरु हैं। इस दिन सिख संप्रदाय के अनुयायी सुबह गुरुद्वारे जाकर गुरुवाणी सुनते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।

इस दिन सिख धर्म को मानने वाले सभी लोग नानकदेव जी के तीन सिद्धांतों के पालन का महत्व समझते हैं। ये तीन सिद्धांत हैं- पहला- नाम जपना, दूसरा कीर्त करना (कमाई करना) और तीसरा वंड के छकना (बांट कर खाना)।


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