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शुक्रवार को करें मां लक्ष्मी का ये अदभुत पूजन और मंत्र का जाप, कभी नहीं होंगे धन अभाव

इन आठ लक्ष्मी की साधना करने से मानव जीवन सफल हो जाता है। अष्ट लक्ष्मी और उनके मूल बीज मंत्र इस प्रकार है। अष्ट लक्ष्मी साधना का उद्देश जीवन में धन के अभाव को मिटा देना है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 04 Aug 2016 12:54 PM (IST)Updated: Fri, 05 Aug 2016 10:46 AM (IST)

शुक्रवार को मां लक्ष्मी का दिन होता है और माना जाता है कि मां लक्ष्मी की पूजा से इंसान को धन की प्राप्ति होती है। अगर आप काफी समय से आर्थिक तंगी में है तो अपने काम के साथ साथ मां लक्ष्मी का इस तरह पूजन अवश्य करें । शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी को चंचला कहा जाता है अर्थात जो कभी एक स्थान पर रूकती नहीं। अतः लक्ष्मी अर्थात धन को स्थायी बनाने के लिए कुछ उपाय, पूजन, आराधना, मंत्र-जाप आदि का विधान है।

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ऋषि विश्वामित्र के कठोर आदेश अनुसार लक्ष्मी साधना गोपनीय एवं दुर्लभ है तथा इसे गुप्त रखना चाहिए। ऐसा शास्त्रोक्त वर्णित है के समुद्र-मंथन से पूर्व सभी देवता निर्धन और ऐश्वर्य विहीन हो गए थे तथा लक्ष्मी के प्रकट होने पर देवराज इंद्र ने महालक्ष्मी की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर महालक्ष्मी ने देवराज इंद्र को वरदान दिया कि तुम्हारे द्वारा दिए गए द्वादशाक्षर मंत्र का जो व्यक्ति नियमित रूप से प्रतिदिन तीनों संध्याओं में भक्तिपूर्वक जप करेगा, वह कुबेर सदृश ऐश्वर्य युक्त हो जाएगा।

ऐसा शास्त्रों में वर्णन आता है के महालक्ष्मी के आठ स्वरुप है। लक्ष्मी जी के ये आठ स्वरुप जीवन की आधारशिला है। इन आठों स्वरूपों में लक्ष्मी जी जीवन के आठ अलग-अलग वर्गों से जुड़ी हुई हैं। इन आठ लक्ष्मी की साधना करने से मानव जीवन सफल हो जाता है। अष्ट लक्ष्मी और उनके मूल बीज मंत्र इस प्रकार है।

श्री आदि लक्ष्मी - ये जीवन के प्रारंभ और आयु को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं।।

श्री धान्य लक्ष्मी - ये जीवन में धन और धान्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं क्लीं।।

श्री धैर्य लक्ष्मी - ये जीवन में आत्मबल और धैर्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

श्री गज लक्ष्मी - ये जीवन में स्वास्थ और बल को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

श्री संतान लक्ष्मी - ये जीवन में परिवार और संतान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं।।

श्री विजय लक्ष्मी यां वीर लक्ष्मी - ये जीवन में जीत और वर्चस्व को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ क्लीं ॐ।।

श्री विद्या लक्ष्मी - ये जीवन में बुद्धि और ज्ञान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ ऐं ॐ।।

श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी - ये जीवन में प्रणय और भोग को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - ॐ श्रीं श्रीं।।

अष्ट लक्ष्मी साधना का उद्देश जीवन में धन के अभाव को मिटा देना है। इस साधना से भक्त कर्जे के चक्र्व्ह्यु से बहार आ जाता है। आयु में वृद्धि होती है। बुद्धि कुशाग्र होती है। परिवार में खुशाहाली आती है। समाज में सम्मान प्राप्त होता है। प्रणय और भोग का सुख मिलता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा होता है और जीवन में वैभव आता है।

अष्ट लक्ष्मी साधना विधि:

शुक्रवार की रात तकरीबन 09:00 बजे से 10:30 बजे के बीच गुलाबी कपड़े पहने और गुलाबी आसान का प्रयोग करें। गुलाबी कपड़े पर श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें। किसी भी थाली में गाय के घी के 8 दीपक जलाएं। गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। लाल फूलो की माला चढ़ाएं। मावे की बर्फी का भोग लगाएं। अष्टगंध से श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी के चित्र पर तिलक करें और कमलगट्टे हाथ में लेकर इस मंत्र का यथासंभव जाप करें।

मंत्र: ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीयै ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा।।

जाप पूरा होने के बाद आठों दीपक घर की आठ दिशाओं में लगा दें तथा कमलगट्टे घर की तिजोरी में स्थापित करें। इस उपाय से जीवन के आठों वर्गों में सफलता प्राप्त होगी।

श्री महालक्ष्मी पूजन के सरल मंत्र

महालक्ष्मी का पूजन सुख-समृद्धि की प्राप्ति कराता है। वैभव लाता है। महालक्ष्मी के पूजन में निम्न में से किसी भी एक मंत्र का जप 108 बार करना चाहिए।

श्री महालक्ष्मी के पूजन के सरल मंत्र

महालक्ष्मी पूजन के दो सरल मंत्र हैं। जिनका उच्चारण भी सरल है। महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए रोज इन मंत्रों का जप किया जा सकता है।

श्री महालक्ष्म्यै नमः।

ऊँ महालक्ष्म्यै नमः।

श्री महालक्ष्मी के अन्य मंत्र-

शास्त्रों में देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के कई मंत्र हैं। जिनमें से तीन मंत्र इस प्रकारहैं। इन मंत्रों को तीव्र असरकारी कहा गया है। लेकिन उच्चारण में कठिन है। इसलिए प्रशिक्षित होने पर ही इन मंत्रों का जाप करें।

ऊँ श्रीं श्रियै नमः।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा ।

ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्म्यै नमः।


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