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पुजारियों का दावा खारिज, कालकाजी मंदिर के लिए बनेगी प्रबंधन कमेटी

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्यकूट पर्वत पर विराजमान कालकाजी मंदिर को निजी संपत्ति बताने वाले पुजारियों के दावे को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है। साथ ही सरकार को आदेश दिया है कि मंदिर के लिए जल्द से जल्द प्रबंधन कमेटी का गठन किया जाए। अदालत ने कहा मंदिर में आने वाला चढ़ावा सिर्फ भगवान का है। जि

By Edited By: Published: Wed, 27 Aug 2014 02:19 PM (IST)Updated: Wed, 27 Aug 2014 03:25 PM (IST)

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली।

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अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्यकूट पर्वत पर विराजमान कालकाजी मंदिर को निजी संपत्ति बताने वाले पुजारियों के दावे को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है। साथ ही सरकार को आदेश दिया है कि मंदिर के लिए जल्द से जल्द प्रबंधन कमेटी का गठन किया जाए। अदालत ने कहा मंदिर में आने वाला चढ़ावा सिर्फ भगवान का है। जिस पर पुजारी का कोई हक नहीं है। पीठ ने कहा कि मंदिर का प्रबंधन होने के बाद भी पुजारियों को पूजा पाठ और अन्य कर्म करने से रोका नहीं जाएगा। वह इसे जारी रखेंगे और मंदिर परिसर में होने वाली आय तहबाजारी में बराबरी का हिस्सा रखेंगे। हालांकि मंदिर के सभी पुजारियों को अभी आदेश की प्रति नहीं मिली है।

जस्टिस दीपक मिश्रा और अभय मनोहर सप्रे की पीठ ने सरकार से कहा कि वह मंदिर की देखभाल और उसके प्रबंधन के लिए योजना बनाएं जिससे चढ़ावे तथा तहबाजारी की कमाई का हिसाब किताब रखा जा सके। पीठ ने कहा मंदिर किसी की निजी संपत्ति नहीं है। यह किसी के घर में नहीं बना हुआ मंदिर है। जिससे वह इसे निजी संपत्ति कह सके। मंदिर को सार्वजनिक रूप से दर्शनों के लिए खोला जाता है और चढ़ावा स्वीकार किया जाता है। जिससे इसका स्वरूप सार्वजनिक बन जाता है।

मंदिर की विशेषता

कालिकाजी मंदिर देश के प्राचीनतम सिद्धपीठों में से एक है। जहां नवरात्र में हजारों लोग माता का दर्शन करने पहुंचते हैं। इस पीठ का अस्तित्व अनादि काल से है। माना जाता है कि हर काल में इसका स्वरूप बदला। मान्यता है कि इसी जगह आद्यशक्ति माता भगवती महाकाली के रूप में प्रकट हुई और असुरों का संहार किया। तब से यह मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है। मौजूदा मंदिर बाबा बालक नाथ ने स्थापित किया। मंदिर के महंत सुरेंद्रनाथ अवधूत के अनुसार महाभारत काल में युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ यहां भगवती की अराधना की। बाद में बाबा बालकनाथ ने इस पर्वत पर तपस्या की। मुख्य मंदिर में 12 द्वार हैं, जो 12 महीनों का संकेत देते हैं। हर द्वार के पास माता के अलग-अलग रूपों का चित्रण किया गया है।

-आशुतोष

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