गणेशजी के यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर कर इच्छाएं पूरी करने वाला है
इस दिन संकट हरण गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है, यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है।
माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के इस व्रत को लोक प्रचलित भाषा में संकट चौथ कहा जाता है। इस दिन संकट हरण गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है, यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं गणेशजी की पूजा करती हैं और कथा सुनने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोलती हैं।
देवों में सर्वप्रथम पूजने का विधान देवों के देव महादेव शिव के पुत्र गणेश जी का है। गणेश जी को विघ्न विनाशक और बुद्धिदाता कहा जाता है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है क्योंकि श्री गणेश बुद्धि से सफलता देने वाले और विघ्नों को दूर करने वाले माने जाते हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेश जी के कई नाम हैं लेकिन हर नाम के साथ आस्था और भक्ति की अपनी ही कहानी है। गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग-अलग अवतार लिया।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में के अनुसार भगवान श्री गणेश कई रुपों में अवतार लेकर प्राणीजनों के दुखों को दूर करते हैं. श्री गणेश मंगलमूर्ति है। श्री गणेश शुभता के प्रतीक है। पंचतत्वों में श्री गणेश को जल का स्थान दिया गया है। बिना गणेश का पूजन किए बिना कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती है।
गणेश संकट चौथ व्रत का महत्व
श्री गणेश चतुर्थी का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी बुद्धि और ऋषि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विध्न बाधाओं का भी नाश होता है। सभी तिथियों में चतुर्थी तिथि श्री गणेश को सबसे अधिक प्रिय होती है।
श्री गणेश संकट चतुर्थी पूजन
संतान की कुशलता की कामना व लंबी आयु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। व्रत का आरंभ तारों की छांव में करना चाहिए व्रतधारी को पूरा दिन अन्न, जल ग्रहण किए बिना मंदिरों में पूजा अर्चना करनी चाहिए और बच्चों की दीर्घायु के लिए कामना करनी चाहिए। इसके बाद संध्या समय पूजा की तैयारी के लिए गुड़, तिल, गन्ने और मूली को उपयोग करना चाहिए। व्रत में यह सामग्री विशेष महत्व रखती है, देर शाम चंद्रोदय के समय व्रतधारी को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य देकर भगवान चंद्र देव से व्रत की सफलता की कामना करनी चाहिए।
माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत लोक प्रचलित भाषा में इसे सकट चौथ कहा जाता है। इस दिन संकट हरण गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है, यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं गणेशजी की पूजा की जाती है और कथा सुनने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोला जाता है।
इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान शिव तथा पार्वती की पूजा भी गणेश जी के साथ करें। सुबह के समय आप अपने पूजा स्थान पर भगवान गणेश की पुजा कर सकते हैं अथवा घर के समीप बने किसी शिवालय में जाकर गणेश जी के साथ शिव भगवान व माता पार्वति की पूजा करें. पूजा में गणेश जी को विधिवत तरीके से धूप-दीप दिखाकर मंत्रों का जाप या गणेश स्तोत्र का पाठ आदि किया जा सकता है. संध्या समय में सूर्यास्त से पहले गणेश संकष्ट चतुर्थी व्रत की कथा की जाती है, कथा करते अथवा सुनते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें. स्वच्छ आसन पर विराजें. हाथ में चावल और दूर्वा लेकर कथा सुनें. कथा सुनते समय एक लोटे अथवा गिलास में पानी भरकर अपने पास रखें. उस लोटे अथवा गिलास पर रोली से पांच या सात बिन्दी लगा दें और उसके चारों ओर मौली का धागा बांध दें. कथा सुनने के पश्चात पानी से भरा गिलास अथवा लोटे के पानी को आप सूर्य को अर्पित कर दें. यदि सूर्य अस्त हो गया तब आप पानी पौधों में डाल दें. हाथ में लिए गए चावल तथा दूर्वा को एक चुन्नी अथवा साडी़ या साफ रुमाल में बाँधा लिया जाता है और रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देते समय उन्हीं चावल तथा दूर्वा को हाथ में लेकर गणेश जी व चन्द्र भगवान का ध्यान करते हुए अर्ध्य दिया जाता है. कुछ स्थानों पर इस दिन तिल खाने का भी विधान मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से आपके सभी मनोरथ पूर्ण होंगे और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी ।