मंदिर जाएं तो परिक्रमा और ये काम जरूर करें
हम जब मंदिर जाते हैं तो पूजा अर्चना के साथ ईश्वर की परिक्रमा भी करते हैं परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु भगवान का ध्यान करते हैं और प्रतिमा की पीठ के पास अपनी मनोकामना कहते हैं। माना जाता है कि इससे भगवान शीघ्र ही उसकी इच्छा पूरी करते हैं। इसके अलावा
हम जब मंदिर जाते हैं तो पूजा अर्चना के साथ ईश्वर की परिक्रमा भी करते हैं। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु भगवान का ध्यान करते हैं और प्रतिमा की पीठ के पास अपनी मनोकामना कहते हैं। माना जाता है कि इससे भगवान शीघ्र ही उसकी इच्छा पूरी करते हैं। इसके अलावा मंदिर जाने पर हम क्या ऐसा करें कि हमें बेहतर फल मिले।
ब्रह्मांड में विभिन्न ग्रह-उपग्रह अपने पथ पर परिक्रमा करते हैं जिससे दिन-रात, ऋतु-माह बदलते हैं, सृष्टि का संतुलन बना रहता है। साथ ही वे इससे ऊर्जा भी प्राप्त करते हैं। परिक्रमा के संबंध में एक पौराणिक कथा भी कही जाती है। कहते हैं कि जब गणेश और कार्तिकेयजी के बीच यह प्रश्न उठा कि दोनों में से श्रेष्ठ कौन है, तो वे कार्तिकेय संपूर्ण ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकले और गणेशजी ने वहीं माता पार्वती और भगवान शिव की परिक्रमा कर ली।
प्रतियोगिता में गणेशजी विजयी हुए। भगवान की परिक्रमा करने मात्र से संपूर्ण ब्रह्मांड की परिक्रमा, तीर्थों का फल मिल जाता है। इसलिए मंदिर में भगवान के दर्शन-पूजन के साथ ही परिक्रमा करने का भी विधान है।
परिक्रमा के दौरान मन में शुभ भावों पर ही मनन करना चाहिए। बहुत तेजी से या बहुत धीमी गति से परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। परिक्रमा पथ में सांसारिक विषयों से संबंधित बातें नहीं करनी चाहिए। पथ में पीछे की ओर लौटना, हंसी-मजाक करना या उच्च स्वर में नहीं बोलना चाहिए।परिक्रमा के दौरान अपने इष्ट देव के मंत्र का जाप करने से उसका शुभ फल मिलता है। हर परिक्रमा के बाद देव प्रतिमा को प्रणाम करें। परिक्रमा के बाद भगवान को पीठ नहीं दिखानी चाहिए। भगवान गणपति 1 परिक्रमा, विष्णुजी 3 परिक्रमा, मां दुर्गा 6 और भगवान शिव आधी परिक्रमा से भी प्रसन्न हो जाते हैं।
जब हम मंदिर जाते है तो हम भगवान की परिक्रमा जरुर लगाते है | पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि देव मूर्ति की परिक्रमा क्यों की जाती है? शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है | यह निकट होने पर अधिक गहरा और दूर दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ति हो जाती है |
कैसे करें परिक्रमा…
देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से करनी चाहिए क्योकि दैवीय शक्ति की आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है । बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है | जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है |
किस देव की कितनी परिक्रमा करनी चाहिये ?
वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप नष्ट होते है | सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं |
– महिलाओं द्वारा “वटवृक्ष” की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक है |
– “शिवजी” की आधी परिक्रमा की जाती है | शिव जी की परिक्रमा करने से बुरे खयालात और अनर्गल स्वप्नों का खात्मा होता है। भगवान शिव की परिक्रमा करते समय अभिषेक की धार को न लांघे |
– “देवी मां” की एक परिक्रमा की जानी चाहिए |
– “श्रीगणेशजी और हनुमानजी” की तीन परिक्रमा करने का विधान है | गणेश जी की परिक्रमा करने से अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं की तृप्ति होती है | गणेशजी के विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने लगते हैं |
– “भगवान विष्णुजी” एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए | विष्णु जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि करते हैं |
6. – सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन पवित्र और आनंद से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ विचार पोषित होते हैं | हमें भास्कराय मंत्र का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है | जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर “ॐ भास्कराय नमः” का जाप करना | देवी के मंदिर में महज एक परिक्रमा कर नवार्ण मंत्र का ध्यान जरूरी है; इससे सँजोए गए संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं |
परिक्रमा के संबंध में नियम
परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए; साथ ही परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी | ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती |
– परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना करें | जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें |
- उलटी अर्थात बाये हाथ की तरफ परिक्रमा नहीं करनी चाहिये |
इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है | इस प्रकार सही परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ की प्राप्ती होती है |
इसके अलावा मंदिर में जाएं तो ये काम जरूर करें
अगर आप मंदिर जाते हैं तो वहां मूर्ति के सामने जरूर बैठना चाहिए। यह अपने मन को शांत और वश में करने का भी एक तरीका है। मंदिर में सुंदर प्रतिमाएं इसीलिए बनाते हैं ताकि वहां बैठने के बाद अच्छा लगे।
मंदिर में हीरे, पन्ने, स्वर्ण और चांदी के साथ। वे फल फूल, अगरबत्ती, मिठाई इत्यादि मूर्ति के सामने रखते हैं। ताकि मन और सारी इंद्रियां ईश्वर पर केंद्रित हो जाएं। एक बार मन ठहर जाता है, वे आपको आंखें बंद कर के ध्यान करने को कहते हैं। यह दूसरा कदम है। ध्यान में आप भगवान को स्वयं में पाते हैं। एक बहुत सुंदर श्रुति है वेदांत में।
जब कोई व्यक्ति पूछता है भगवान कहां है? बुद्धिमान व्यक्ति उत्तर देते हैं कि मनुष्यों के लिए प्रेम ही भगवान है। कम बुद्धिमान उन्हें लकड़ी और पत्थर की मूर्तियों में देखते हैं, पर बुद्धिमान लोग भगवान को स्वयं में देखते हैं। चाहे पूजा में बहुत से विस्तृत कार्य बताए जाते हैं, हमें उन सबको करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जब हम ध्यान करते हैं तो हमें दिखता है कि सब कुछ वह ईश्वर ही है।
प्राचीन परंपराओं को बनाए रखने के लिए हमें यह सब रीतियां और रस्में करनी चाहिए। इस लिए, हमें नियम से दिया जलाना चाहिए, भगवान को पुष्प अर्पित करने चाहिए। साथ ही मंदिर में जाएं तो भगवान के दर्शन के दौरान वहां ठहरना चाहिए और ध्यान लगाना चाहिए।