कैसे करें इस बार सावन के सोमवार की पूजा
ऊॅ नम: शिवाय। अनादि, अनंत, देवाधिदेव, महादेव शिव परंब्रह्म हैं। सहस्त्र नामों से जाने जाने वाले र्त्यम्बकम् शिव साकार, निराकार, ऊॅकार और लिंगाकार रूप में देवताओं, दानवों तथा मानवों द्वारा पुजित हैं। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सावन सोमवार, सोलह
[प्रीति झा]। ऊॅ नम: शिवाय। अनादि, अनंत, देवाधिदेव, महादेव शिव परंब्रह्म हैं। सहस्त्र नामों से जाने जाने वाले र्त्यम्बकम् शिव साकार, निराकार, ऊॅकार और लिंगाकार रूप में देवताओं, दानवों तथा मानवों द्वारा पुजित हैं। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सावन सोमवार, सोलह सोमवार और सोम प्रदोष।
इस बार सावन में चार ही सोमवारी होंगे। सोमवार व्रत की विधि सभी व्रतों में समान होती है। इस व्रत को श्रावण माह में आरंभ करना शुभ माना जाता है। श्रावण सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है।
श्रावण सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है। शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी चाहिए। व्रत करने वाले को एक बार भोजन करना चाहिए।
श्रावण मास में आने वाले सोमवार के दिनों में भगवान शिवजी का व्रत करना चाहिए और व्रत करने के बाद भगवान श्री गणेश जी, भगवान शिवजी, माता पार्वती व नन्दी देव की पूजा करनी चाहिए। पूजन सामग्री में जल, दुध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त,मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल,गट्ठा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा, दक्षिणा चढाया जाता है।
इस दिन धूप दीया जलाकर कपूर से आरती करनी चाहिए। व्रत के दिन पूजा करने के बाद दिन भर व रख कर रात में एक बार भोजन करना चाहिए। और श्रावण मास में इस माह की विशेषता का श्रवण करना चाहिए।
शिव पूजन में बेलपत्र प्रयोग करना-
भगवान शिव की पूजा जब बेलपत्र से की जाती है, तो भगवान अपने भक्त की कामना बिना कहे ही पूरी करते है. बिल्व पत्र के बारे में यह मान्यता प्रसिद्ध है, कि बेल के पेड़ को जो भक्त पानी या गंगाजल से सींचता है, उसे समस्त तीर्थो की प्राप्ति होती है। वह भक्त इस लोक में सुख भोगकर, शिवलोक में प्रस्थान करता है। बिल्व पत्थर की जड़ में भगवान शिव का वास माना गया है। यह पूजन व्यक्ति को सभी तीर्थो में स्नान करने का फल देता है। एक छोटे से बिल्वपत्र को चढ़ाने मात्र से जन्मों के पाप नष्ट होते है।
सावन माह व्रत विधि-
सावन के व्रत करने से व्यक्ति को सभी तीर्थों के दर्शन करने से अधिक पुन्य फल प्राप्त होते है। जिस व्यक्ति को यह व्रत करना हो, व्रत के दिन प्रात:काल में शीघ्र सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। श्रावण मास में केवल भगवान श्री शकर की ही पूजा नहीं की जाती है, बल्कि भगवान शिव की परिवार सहित पूजा करनी चाहिए। सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से शुरु होकर सूर्यास्त तक किया जाता है। व्रत के दिन सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए। तथा व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन में सूर्यास्त के बाद एक बार भोजन करना चाहिए।
प्रात:काल में उठने के बाद स्नान और नित्यक्रियाओं से निवृत होना चाहिए। इसके बाद सारे घर की सफाई कर, पूरे घर में गंगा जल या शुद्ध जल छिड़कर, घर को शुद्ध करना चाहिए। इसके बाद घर के ईशान कोण दिशा में भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए। मूर्ति स्थापना के बाद सावन मास व्रत संकल्प लेना चाहिए।
श्रावण मास शिव उपासना महत्व-
भगवान शिव को श्रावण मास सबसे अधिक प्रिय है। इस माह में प्रत्येक सोमवार के दिन भगवान श्री शिव की पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस मास में भक्त भगवान शकर का पूजन व अभिषेक करते है। सभी देवों में भगवान शकर के विषय में यह मान्यता प्रसिद्ध है, कि भगवान भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते है।
श्रावण मास के विषय में प्रसिद्ध एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास के सोमवार व्रत, एक प्रदोष व्रत तथा और शिवरात्री का व्रत जो व्यक्ति करता है, उसकी कोई कामना अधूरी नहीं रहती है। 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान यह व्रत फल देता है।
इस व्रत का पालन कई उद्देश्यों से किया जा सकता है। महिलाएं श्रावण के 16 सोमवार के व्रत अपने वैवाहिक जीवन की लंबी आयु और संतान की सुख-समृ्दि्ध के लिये करती है, तो यह अविवाहित कन्याएं इस व्रत को पूर्ण श्रद्वा से कर मनोवाछित वर की प्राप्ति करती है। सावन के 16 सोमवार के व्रत कुल वृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति और सुख -सम्मान के लिये किया जाता है।
शिव पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ अवश्य करें-
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पून्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है।
वेदों, पुराणों और उपनिषदों में अनेक नामों से शिव की महिमा गाई गई है। 1.हर-हर महादेव, 2 रुद्र, 3 शिव, 4 अंगीरागुरु, 5 अंतक, 6 अंडधर, 7 अंबरीश, 8 अकंप, 9 अक्षतवीर्य, 10 अक्षमाली इत्यादि।
पूजा-विधि समाप्त करने के बाद अंत में रुद्राष्टक पढ़ कर पूजा का विसर्जन करना चाहिए।
शिव रुद्राष्टक-
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्? ॥
निराकांर मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम ।
करालं महाकाल कालं कृपालं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र सुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्ट प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिदान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम ।
जरा जन्म दु:खौध तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रुद्राष्टकम् इदं प्रोक्तं विप्रेणहरोतषये
ए पठन्ति: नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसिदति।।