इस बार ऐसे करें होली पूजन अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होगी व सालभर नहीं होगी कोई परेशानी
भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है
By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 07 Mar 2017 12:28 PM (IST)Updated: Wed, 08 Mar 2017 09:35 AM (IST)
होली की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बाजार में गुलाल और पिचकारियों की दुकानें, रंग-बिरंगी खुशबूदार गुलाल के बीच एक से बढ़कर एक सुंदर पिचकारियों की दुकानें भी सज गई हैं। बच्चों की पसंदीदा पिचकारी छोटा भीम, डोरेमोन, रोबोट और पक्षियों की पिचकारियां इस होली पर आपको रंगों से सराबोर करती नजर आएंगी।
होली हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस बार 13 मार्च को रंगों वाली होली है। होली की शाम को होलिका का पूजन किया जाता है। होलिका का पूजन विधि-विधान से करने से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। होली की पूजन विधि इस प्रकार है-
पूजन सामग्री-
रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, बड़कुले (भरभोलिए) आदि।
लकड़ी और कंडों की होली के साथ घास लगाकर होलिका खड़ी करके उसका पूजन करने से पहले हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं। इसके बाद होलिका की तीन परिक्रमा करते हुए नारियल का गोला, गेहूं की बाली तथा चना को भूंज कर इसका प्रसाद सभी को वितरित करें।
ऐसे करें पूजा
होलिका दहन के समक्ष पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठे। एक लोटा जल, माला, मौली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशा, गुलाल, नारियल लें। नई फसल में पके चने व गेहूं की बालियां रखें। जल, अक्षत, पुष्प लेकर विधिवत अपना नाम, पिता का नाम, गोत्र, शहर, तिथि, संवत का उच्चारण कर संकल्प लें। ये सामग्री अर्पित करें कच्चे आम, नारियल, भुट्टा, सप्त धान में गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल, मसूर तथा शक्कर से बनी माला, नई फसल का कुछ भाग अर्पित करें। एक थाली में सारी पूजन सामग्री लें और साथ में एक पानी का लौटा भी लें। इसके पश्चात होली पूजन के स्थान पर पहुंचकर नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करते हुए स्वयं पर और पूजन सामग्री पर थोड़ा जल छिड़कें-
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।
अब हाथ में पानी, चावल, फूल एवं कुछ दक्षिणा लेकर नीचे लिखें मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भागवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे क्रोधी नाम संवत्सरे संवत्--- फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि-- -गौत्र(अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना----------(अपने नाम का उच्चारण करें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।
होली पूजन दहन कैसे करें
पूर्ण चंद्रमा (फाल्गुनपूर्णिमा) के दिन ही प्रारंभ होता है। इस दिन सायंकाल को होली जलाई जाती है। इसके एक माह पूर्व अर्थात् माघ पूर्णिमा को एरंड या गूलर वृक्ष की टहनी को गांव के बाहर किसी स्थान पर गाड़ दिया जाता है, और उस पर लकड़ियां, सूखे उपले, खर-पतवार आदि चारों से एकत्र किया जाता है और फाल्गुन पूर्णिमा की रात या सायंकाल इसे जलाया जाता है। परंपरा के अनुसार सभी लोग अलाव के चारों ओर एकत्रित होते हैं। इसी अलाव को होली कहा जाता है। होली की अग्नि में सूखी पत्तियां, टहनियां, व सूखी लकड़ियां डाली जाती हैं, तथा लोग इसी अग्नि के चारों ओर नृत्य व संगीत का आनन्द लेते हैं। प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता हैं। इसलिए होलिका-दहन से पूर्व और भद्रा समय के पश्चात् होली का पूजन किया जाना चाहिए।
भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है। हिंदू धर्म में अनगिनत मान्यताएं, परंपराएं एवं रीतियां हैं। वैसे तो समय परिवर्तन के साथ-साथ लोगों के विचार व धारणाएं बदलीं, उनके सोचने-समझने का तरीका बदला, परंतु संस्कृति का आधार अपनी जगह आज भी कायम है।
होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए--
अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:
इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए.
भद्रा में होलिकादहन करने से जनसमूह का नाश होता है। प्रतिपदा, चतुर्दशी, भद्रा और दिन इनमें होली जलाना सर्वथा त्याज्य है। कुयोगवश यदि जला दी जाए तो वहां के राज्य, नगर और मनुष्य अद्भूत उत्पातों से एक ही वर्ष में हीन हो जाते हैं।
सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है। इसमें अग्नि प्रज्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है। सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है। अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती है। तथा बड़ों का आशिर्वाद लिया जाता है। सेंक कर लाये गये धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है।
ऐसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है। तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है।
सूर्य की बेटी और शनि की बहन-
शास्त्रों के अनुसार भद्रा सूर्यदेव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। यह कड़क स्वभाव की मानी गई है। मान्यता है कि ब्रह्म देवता ने भद्रा को नियंत्रित करने के लिए कालगणना और पंचांग में विशिष्ट स्थान दिया है। भद्रा के दौरान विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन और होलिका दहन को निषेध माना गया है। इसकी अवधि 7 से 13 घंटे 20 मिनट तक होती है।
लगेगा मांगलिक कार्यो पर विराम-
होलाष्टक के साथ मांगलिक कार्यो पर विराम लगेगा। जहां कुछ पंचांग में होलाष्टक की तारीख 8 मार्च तो कुछ में 9 मार्च बताई गई है। इसके साथ ही 41 दिन के लिए विवाह पर विराम लग जाएगा। 16 मार्च तक होलाष्टक होने से मांगलिक आयोजन नहीं होंगे।
इसके बाद 14 मार्च को सूर्य मीन राशि में प्रवेश करेगा जो 14 अप्रैल तक रहेगा। इसके चलते शुभ कार्य नहीं होंगे। शुभ कार्य की शुरुआत 18 अप्रैल से वैवाहिक आयोजनों की शुरुआत होगी। होलाष्टक के साथ ही रंगों के त्योहार का उल्लास अपना रंग जमाने लगेगा।
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