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बरसाना की होली के बारे में ये अद्भूत बातें आपने आज तक नहीं सुनी होगी

थकित भये रवि चन्द्र भी अहो हरि होली हैÓ सैकड़ों वर्ष पहले किसी विद्वान ने ये पद यूं ही नहीं लिखा होगा। द्वापर युग में रंग-रंगीले बरसाना में छैल-छबीली हुरियारिनों और मस्ती में डूबे हुरियारों की जीवंत परंपरा आज भी कायम है। ग्रंथों में जिक्र है कि बरसाना की होली

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 28 Feb 2015 03:21 PM (IST)Updated: Sat, 28 Feb 2015 03:29 PM (IST)
बरसाना की होली के बारे में ये अद्भूत बातें आपने आज तक नहीं सुनी होगी

बरसाना/ मथुरा। 'थकित भये रवि चन्द्र भी अहो हरि होली हैÓ सैकड़ों वर्ष पहले किसी विद्वान ने ये पद यूं ही नहीं लिखा होगा। द्वापर युग में रंग-रंगीले बरसाना में छैल-छबीली हुरियारिनों और मस्ती में डूबे हुरियारों की जीवंत परंपरा आज भी कायम है। ग्रंथों में जिक्र है कि बरसाना की होली देखने के लिए देवगण भी आते हैं।

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अंग्रेजों के जमाने में ब्रिटिश कलक्टर एफएस ग्राउस को होली के रंगों से जलन थी, मगर बाद में उसे हुरियारिनों की दैवी शक्ति का आभास हो गया था। लठामार होली जब तक होती रही, सूरज अपनी जगह पर टिके रहे थे। पौराणिक तथ्य कुछ भी रहे हों, मगर होली देखने को आसमां में सूरज और चंद्रमा की तनातनी शुक्रवार को भी देखी गई। सूरज तभी अस्ताचल को गए, जब हुरियारिनों के हाथों की शोभा बने अगले बरस फिर हुरियारों पर बरसने की तमन्ना के साथ घर लौट गए।

चंद्रमा तो होली का आनंद उठाने के लिए सूरज के सामने ही आसमान में आ डटे। बरसाना की होली की गाथा सुन मथुरा के तत्कालीन अंग्रेज कलक्टर एफएस ग्राउस 22 फरवरी 1877 को पहली बार लठामार होली देखने बरसाना आए थे। अपने शोध ग्रंथ 'ए डिस्टिक्ट मेमोयरÓ में इस आंखों देखी होली का वर्णन उन्होंने कुछ इस तरह किया था। लिखा था कि ग्रामीण बिदूषकों की ठिठोलियां, कामुक युवा सुलभ नृत्य और हास्योत्पादक ढंग से हस्त संचालन के साथ उछल-कूद आदि पारंपरिक क्रियाकलाप काफी मनोरंजन दृश्य उपस्थित कर रहे हैं।

ये जानकर आश्चर्य हुआ कि होली खत्म होने के बाद ही सूरज अस्त हुए। बरसाना की रंगीली गली निवासी 85 वर्षीय चेतराम पहलवान बताते हैं कि उन्हें बुजुर्गों ने बताया था कि अंग्रेज कलक्टर ग्राउस ने इम्तिहान बतौर लठामार होली को जारी रखवाया था। वो देखना चाहता था कि सूरज अपने निर्धारित समय पर अस्त हुए या नहीं। बकौल चेतराम, ग्राउस ये देखकर चमत्कृत हो गया कि काफी देर होने के बावजूद सूरज अस्त नहीं हुए थे। जब उसने होली बंद कराई तो तत्काल बाद सूरज भी धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर चले गए थे।

शुक्रवार को भी यही हुआ। बरसाना की धरा पर तड़ातड़ लाठियां बरस-गरज रही थीं, तो आसमान में चंद्रमा सूरज के सामने ही आसमान में आ चुके थे। ब्रह्मंड में घटित ये वाकया बरसाना वासियों के लिए नया नहीं था। विद्वतजन तो शुक्रवार को इस नजारे का पुराणों में वर्णित तथ्यों से मिलान कर रहे थे। ब्रज की होली को लेकर ग्रंथों में उल्लिखित है- श्रीजी बरसाना की रंगीली होली को देखते-देखते सूरज भी थक गए। 'थकित भये रवि-चंद्र अहो हरी होरी है।Ó विद्वतजन कहते हैं कि जब तक बरसाना में होली होती है, सूरज भी निहारते रहते हैं। होली देखते-देखते इतने मस्त हो जाते हैं कि उन्हें अस्ताचल की ओर जाने की सुधि ही नहीं रहती या फिर ये कहा जाए कि वे जाना ही नहीं चाहते, बल्कि इस नजारे को निहारने के लिए सूरज के अस्त होने का इंतजार करते हैं! शाम करीब साढ़े छह बजे हुरियारिनों ने बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। छोटों को आशीर्वाद दिया। सब लौटने लगे अपने-अपने घर की ओर और नंदगांव के हुरियारे चल दिए अपने नंदगांव की ओर।

तभी सूरज ने भी रुख बदल लिया। किरणों धीरे-धीरे अस्त होती गईं और चंद्रमा ने चांदनी रोशनी बिखेर जताई अपनी खुशी।


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