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गायत्री जयंती पर ऐसे करें पूजन, मां गायत्री दिलाएंगी पितृदोष और कालसर्प दोष से मुक्ति

यदि आप कालसर्प दोष, पितृ दोष और शनि की दशाओं से पीडि़त हैं तो हम आप को आज इन सभी दोषों से मुक्ति का उपाय बताने जा रहे हैं। जिसका पालन करने से आप सभी दोषों से मुक्‍त हो जायेंगे।

By prabhapunj.mishraEdited By: Published: Sat, 03 Jun 2017 04:10 PM (IST)Updated: Mon, 10 Jul 2017 02:22 PM (IST)
गायत्री जयंती पर ऐसे करें पूजन, मां गायत्री दिलाएंगी पितृदोष और कालसर्प दोष से मुक्ति

शिव की साधना से मिलती है मुक्ति

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किसी जातक को यदि जन्म पत्रिका में कालसर्प, पितृदोष एवं राहु-केतु तथा शनि से पीड़ा है उसे शिव ही शांत कर सकते हैं। भगवान शिव सृष्टि के संहारकर्ता हैं। भगवान रुद्र साक्षात महाकाल हैं। सृष्टि के अंत का कार्य इन्हीं के हाथों है। सारे देव, दानव, मानव, किन्नर शिव की आराधना करते हैं। मानव के जीवन में आने वाले कष्ट किसी न किसी पाप ग्रह के कारण होते हैं। भगवान शिव को सरल तरीके से मनाया जा सकता है। शिव को मोहने वाली अर्थात शिव को प्रसन्न करने वाली शक्ति है गायत्री मंत्र है। 

इन दोषों से मिलेगी आप को मुक्ति

जो जातक मानसिक रूप से विचलित रहते हैं या ग्रहण योग है। जिनको मानसिक शांति नहीं मिल रही हो तो उन्हें भगवान शिव की गायत्री मंत्र से आराधना करना चाहिए। क्योंकि कालसर्प, पितृदोष के कारण राहु-केतु को पाप-पुण्य संचित करने तथा शनिदेव द्वारा दंड दिलाने की व्यवस्था भगवान शिव के आदेश पर ही होती है। इससे सीधा अर्थ निकलता है कि इन ग्रहों के कष्टों से पीड़ित व्यक्ति भगवान शिव की आराधना करे तो महादेवजी उस जातक की पीड़ा दूर कर सुख पहुंचाते हैं। भगवान शिव की शास्त्रों में कई प्रकार की आराधना वर्णित है परंतु शिव गायत्री मंत्र का पाठ सरल एवं अत्यंत प्रभावशील है।

ऐसे करें मंत्र का जाप

इस मंत्र का जाप करने का कोई विशेष विधि-विधान नहीं है। इसे किसी भी सोमवार से प्रारंभ कर सकते हैं। साथ में सोमवार का व्रत करें तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होंगे। शिवजी के सामने घी का दीपक लगाएं। जब भी यह मंत्र करें एकाग्रचित्त होकर करें। पितृदोष, एवं कालसर्प दोष वाले व्यक्ति को यह मंत्र प्रतिदिन करना चाहिए। सामान्य व्यक्ति भी करे तो भविष्य में कष्ट नहीं आएगा। इस जाप से मानसिक शांति, यश, समृद्धि, कीर्ति प्राप्त होती है।

इस मंत्र का करें जाप

ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।


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