जहां पितृपक्ष के दौरान लोग पूर्वजों को पिंडदान करते हैं
कहते हैं गयासुर की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने वर दिया था कि उसकी मृत्यु संसार में जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति के हाथों नहीं होगी। वर पाने के बाद गयासुर ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया।
कहते हैं गयासुर की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने वर दिया था कि उसकी मृत्यु संसार में जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति के हाथों नहीं होगी। वर पाने के बाद गयासुर ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया।
वह अत्याचारी हो गया। एक दिन जब वह द्वारका वन से गुजर रहा था तब उसने एक महात्मा को तपस्या करते देखा।थके हुए गयासुर ने अपनी प्यास बुझाने के लिए तपस्वी से उनका रक्त मांगा, लेकिन तपस्वी ने उसे मुक्ति का मार्ग सुझाया और बद्रीनाथ में नारायण के दर्शन के लिए कहा।
गयासुर बद्रीनाथ पहुंच गया, लेकिन नारायण को मंदिर में ना पाकर वो उनका कमलासन लेकर उड़ने लगा। इस पर नारायण ने आकाश में ही गयासुर के केश पकड़कर उसे रोक लिया। जिस जगह भगवान ने गयासुर को रोका, वह 'गया' के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
गयासुर को वर देने से पहले भगवान ने उससे युद्ध भी किया था। उन्होंने पहला प्रहार गदा से किया, लेकिन गयासुर ने उसी कमलासन को आगे कर दिया, जिसे वो बद्रीनाथ से लेकर जा रहा था। आसन का एक टुकड़ा बद्रीनाथ के पास गिरा। यही जगह आज बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल नाम से मशहूर है, जहां पितृपक्ष के दौरान लोग पूर्वजों को पिंडदान करते हैं।
नारायण के दूसरे वार पर कमलासन का टुकड़ा उस जगह गिरा जहां आज हरिद्वार है। हरिद्वार में ये जगह नारायणी शिला के नाम से मशहूर है। यही वजह है कि पितृपक्ष में हरिद्वार में भी भारी संख्या में लोग जुटते हैं और अपने पुरखों के लिए पिंडदान करते हैं।
नारायण के प्रहार से कमलासन का तीसरा हिस्सा जो गयासुर के पास रह गया था, उसे लेकर वह गया चला गया था। यही स्थान 'विष्णु चरण' या 'विष्णु पाद' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। लेकिन कमलासन के नष्ट हो जाने के बाद गयासुर ने खुद नारायण से मुक्ति की प्रार्थना की। इस पर भगवान ने न सिर्फ उसे मुक्ति दी बल्कि कहा कि जिन तीन जगहों पर उनका कमलासन गिरा है, वहां पूजा करने से मुक्ति मिलेगी। तभी से इन स्थलों को पितृतृप्ति के स्थल के रूप में मान्यता मिली।
पिता के लिए 'गयाट और माता के लिए 'सिद्धपुर'
पितरों के श्राद्ध के लिए गया को सर्वोत्तम माना गया है, इसे तीर्थों का प्राण तथा पांचवा धाम भी कहते है। माता के श्राद्ध के लिए काठियावाड़ में सिद्धपुर को अत्यंत फलदायक माना गया है। इस स्थान को 'मातृगया' के नाम से भी जाना जाता है। गया में पिता का श्राद्ध करने से पितृऋण से तथा सिद्धपुर में माता का श्राद्ध करने से
मातृऋण से सदा-सर्वदा के लिए मुक्ति प्राप्त होती है।
काशी में होता है त्रिपिंडी श्राद्ध
पितरों की मुक्ति के स्थानों का जिक्र काशी के बिना अधूरा ही है। धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी मोक्ष की नगरी के नाम से जानी जाती है। कहा जाता है कि यहां प्राण त्यागने वाले हर इंसान को भगवान शंकर खुद मोक्ष प्रदान करते हैं, मगर जो लोग काशी से बाहर या काशी में अकाल प्राण त्यागते हैं उनके मोक्ष की कामना से काशी के पिशाच मोचन कुण्ड पर त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है।
काशी के अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पर होने वाले त्रिपिंडी श्राद्ध की मान्यताएं हैं कि पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए पितृ पक्ष के दिनों तीर्थ स्थली पिशाच मोचन पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।