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    आज से एक महीने तक इन मंत्रो का जाप करने से कई मनोकामनाएं पूर्ण होती है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Sat, 17 Dec 2016 10:38 AM (IST)

    इस प्रकार से भीष्म पितामह पूरे खर मास में बाणों की शैया पर लेटे रहे और जैसे ही सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया।

    हिंदू धर्म के पंचाग के अनुसार हर साल सौर पौष को खर मास कहते है। जिसे मलमास या फिर काली रात भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस मास में सुबह सूर्योदय से पहले उठकर अपने नित्य कामों से निवृत्त हो जाना चाहिए। और दिन भर भगवान विष्णु के नाम का जाप करना चाहिए। इसे विष्णु ने अपना नाम दिया था। इसका दूसरा नाम पुरुषोत्तम मास भी है। इस दिनों पर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए साथ ही गो दान, ब्राह्मण की सेवा, दान आदि देने से अधिक फल मिलता है।

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    इस मास में विष्णु को ऐसे करें प्रसन्न

    वैसे तो भगवान विष्णु की किसी भी समय पूजा करें तो उसका फल मिलता है, लेकिन इस मास में पूजा करने का अपना ही महत्व है। इस दिन इन मंत्रो का जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। साथ ही भगवान विष्णु की कृपा आपके ऊपर हमेशा बनी रहती है। इन मंत्रों को प्राचीन काल में श्रीकौण्डिन्य ऋषि ने यह मंत्र बताया था। इस मंत्र को करने से अतुल्य पल की प्राप्ति होती है।

    क्या है मंत्र

    कौण्डिन्येन पुरा प्रोक्तमिमं मंत्र पुन: पुन:।

    जपन्मासं नयेद् भक्त्या पुरुषोत्तममाप्नुयात्।।

    ध्यायेन्नवघनश्यामं द्विभुजं मुरलीधरम्।

    लसत्पीतपटं रम्यं सराधं पुरुषोत्तम्।।

    इस मंत्र का मतलब है कि मंत्र जपते समय नवीन मेघश्याम दोभुजधारी बांसुरी बजाते हुए पीले वस्त्र पहने हुए श्रीराधिकाजी के सहित श्रीपुरुषोत्तम भगवान का ध्यान करना चाहिए।

    गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।

    गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।

    खर मास के ये महत्वपूर्ण बातें

    हिंदू धर्म के पंचाग के अनुसार हर साल सौर पौष को खर मास कहते है। जिसे मलमास या फिर काली रात भी कहा जाता है। मलमास शुरू हो गए है। इस मास में भगवान की पूजा और दान-पुण्य करने से विशेष लाभ मिलता है।

    ज्योतिचार्यों के अनुसार खरमास 16 दिसंबर को दोपहर 2:40 मिनट से शुरू होो पूरें एक महीने 14 जनवरी पौष शुुक्ल पक्ष पंचमी को आधी रात 1: 25 मिनट पर खत्म होगे। इस दिन मकर संक्राति भी होगी। इन दिनों के बीच कोई भी शुभ काम नही होगा। शुभ काम 15 जनवरी से शुरू होगा। एक महीने शादी, ग्रह प्रवेश, व्यापार मुहूर्त, पजन कार्य, मुंडन आदि कुछ भी नही किया जाएगा।

    देशाचार के अनुसार नवविवाहिता कन्या भी खर मास के अन्दर पति के साथ संसर्ग नहीं कर सकती है और उसे इस पूरे महीने के दौरान अपने मायके में आकर रहना पड़ता है।

    खलमास मनाने के पीछें कारण

    मार्कण्डेय पुुराण में इस बारें में विस्तार से बताया गया है। जो एक पौराणिक कथा है। इसमें माना जाता है कि खरमास के खर को गधा कहा जाता है। एक बार सूर्य अपने साथ घोड़ों के रथ में बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करता है। रास्तें में सातों धोड़े साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने लगे। उनकी इस दयनीय स्थिति से निपटने के लिए सूर्य एक तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने के लिए रुकने लगे।

    तब फिर उनकी वही प्रतिज्ञाा याद आई कि रास्तें में कही भी नही रुकना नही है। अगर वह रूक गए तो पूरा सौर मंडल नष्ट हो जाएगा। इसलिए सूर्य भगवान ने अपनी नजरें चारो तरफ घुमाई। तभी उन्होनें देखा कि पास के ही तालाब में दो गधें पानी पी रहे है। उन्होंने तुरंत दोनों गधों को अपने रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए।

    इसी कारण अब गधें अपनी मंद गति से चलने लगें जिसके कारण पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमजोर होकर धरती पर प्रकट हुआ। इसी कारण माना जात है कि पूरे पौष मास के अन्तर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभार ही उनकी तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं।

    खरमास में मरने वालों को मिलता है नर्क

    हिंदू धर्म के पुराण भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही खर मास में किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार माना जाता है इस मास में जिन लोगों की मृत्यु होती है। वह नर्क में जाते है। यानी कि व्यक्ति की मृत्यु अल्पायु में हो या दीर्घायु अगर वह पौष के मल मास में होती है तो वह निश्चित रूप से उसका इहलोक और परलोक नर्क के द्वार की तरफ खुलता है।

    इस बारें में महाभारत में भी बताया गया है। इसके अनुसार जब खर मास के अन्दर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से वेध दिया था। सैकड़ों बाणों से घायल हो जाने के बावजूद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण यही था कि अगर वह इस खर मास में प्राण त्याग करते हैं तो उनका अगला जन्म नर्क की ओर जाएगा।

    इसी कारण उन्होंने अर्जुन से दोबारा एक ऐसा तीर चलाने के लिए कहा था जो उनके सिर पर विद्ध होकर तकिए का काम करे। इस प्रकार से भीष्म पितामह पूरे खर मास में बाणों की शैया पर लेटे रहे और जैसे ही सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। इसी कारण कहा जाता है कि माघ मास की शरीर त्यागने से व्यक्ति सीधा स्वर्ग का भागी होता है।

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