ऐसा मंदिर जहां प्रसाद के रूप में पत्ते मिलते
सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर जिले के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में शामिल है। यह मंदिर सुरकुट मंदिर पर तीन हजार की फीट पर स्थित है ।
प्रसिद्ध सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर जिले के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में शामिल है। यह मंदिर सुरकुट मंदिर पर तीन हजार की फीट पर स्थित है जो चंबा-मसूरी मोटर मार्ग के मध्य में पड़ता है।
बताया जाता है कि जड़धार गांव के आनंद सिंह ने 16वीं सदी में यहां पर छोटे मंदिर की स्थापना की थी। यहां के पुजारी पुजाल्डी के लेखवार जाति के लोग हैं, जबकि जड़धारी सुरकंडा के मैती कहलाते हैं।
स्कंद पुराण में भी इसका वर्णन है। जब दक्ष प्रजापति के यज्ञ में शिव को नहीं बुलाया गया तो सती ने नाराज होकर हवन कुंड में स्वयं की आहुति दी। इसके बाद शिव ने सती को कंधों पर लेकर घुमाया। इस दौरान जहां जहां सती का जो अंग गिरा वह स्थान उसी नाम से जाना जाने लगा। सुरकंडा में माता सती का सिर गिरा था जिस कारण इसका नाम सुरकंडा पड़ा। वर्ष भर यहां पर श्रद्धालु आते रहते हैं, लेकिन नवरात्र और गंगा दशहरा के दौरान यहां पर भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।
कैसे पहुंचे
इस सिद्धपीठ तक पहुंचने के लिए जौलीग्राट तक हेलीकाप्टर सेवा है। निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है। उसके बाद ऋषिकेश से वाया चम्बा करीब 80 किमी का सफर कर कद्दूखाल पहुंचा जाता है। कद्दूखाल से दो किमी का पैदल सफर कर मंदिर तक पहुंचा जाता है।
विशेषता
इस सिद्धपीठ में प्रसाद के रूप में स्थानीय पेड़ रौंसली के पलो दिए जाते है। यह पेड़ भी काफी ऊंचाई पर पाया जाता है। रौंसली के पलाों को भक्तजन अपने घरों में रखते हैं।
वास्तुकला
सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिरको आधुनिक व पौराणिक मिश्रित रूप दिया गया है। खासकर मंदिर में झालरदार शैली का प्रयोग किया गया है। मंदिर में दक्षिण भारतीय मंदिरों की तरह की छत बनाई गई है।
आयोजन
मंदिर में गंगा दशहरा पर प्रत्येक साल विशाल मेले का आयोजन होता है जहां स्थानीय लोगों के अलावा बाहर से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यह पहला सिद्धपीठ है जहां गंगा दशहरा पर मेला लगता है।