गहवर वन में राधा-कृष्ण का रास मंडल मिला
गहवर वन में कराई जा रही खुदाई में अत्यंत प्राचीन चबूतरा जैसा स्थल निकला है। राधा-कृष्ण की रासलीला के पौराणिक महत्व से जुड़े गहवर वन में निकले इस स्थल को संत और विद्वतजन करीब साढ़े पांच सौ साल पुराना रासमंडल बता रहे हैं। इसे देखने के लिए ग्रामीणों का तांता लगा हुआ है। धार्मिक अनुष्ठान औ
बरसाना [मथुरा], जागरण संवाददाता। गहवर वन में कराई जा रही खुदाई में अत्यंत प्राचीन चबूतरा जैसा स्थल निकला है। राधा-कृष्ण की रासलीला के पौराणिक महत्व से जुड़े गहवर वन में निकले इस स्थल को संत और विद्वतजन करीब साढ़े पांच सौ साल पुराना रासमंडल बता रहे हैं। इसे देखने के लिए ग्रामीणों का तांता लगा हुआ है। धार्मिक अनुष्ठान और आयोजन शुरू हो गए हैं।
समीपवर्ती गांव चिकसौली स्थित गहवरवन कुंड के पास ग्रामीणों को खुदाई में यह प्राचीन रासमंडल मिला है। बाबा अनंतदास ने बताया कि एक रात राधारानी की प्रेरणा हुई और उन्हें स्वप्न आया कि इस कुंड के पास जमीन के अंदर रासमंडल है। इस पर दो दिन पहले खुदाई शुरू कराई, जिसमें यह प्राचीन धरोहर निकल आई।
चूने व पत्थर का बना यह रास मंडल साढ़े पांच सौ साल पुराना माना जा रहा है। संभावना जताई जा रही है कि ब्रज में रासलीलानुकरण व दिव्य संत घमंड देव आचार्य ने संभवत: इस रास मंडल का निर्माण कराया होगा। अब इस स्थल पर संतों ने श्रीमद्भागवत कथा, रासलीला और अखंड युगल नाम का संकीर्तन शुरू कराया है।
ब्रज के विरक्त संत रमेश बाबा का मानना है कि ब्रजवासियों व संतों के सहयोग से निकला रास मंडल प्रमाणित करता है कि आज भी राधाकृष्ण गहवरवन में रास रचाते हैं। ब्रजाचार्य पीठाधीश्वर गोस्वामी दीपक राज भट्ट ने का कहना है कि पुरातत्व विभाग को ऐसी प्राचीन धरोहरों को संरक्षित कराना चाहिए और गहवर वन पर शोध कराना चाहिए। मान्यता है कि इस वन को राधा ने अपने हाथों से रोपा था। रोज अपने प्रियतम के साथ वृषभानु नंदनी इस वन में रास रचाया करती थीं।