यहां के ग्रामीण किसी भी रोग से पीडित ना हो इसलिए इस मंदिर में होता है मिर्च से अभिषेक
पहले तो तीनों को मिर्च का ये लेप खिलाया जाता, उसके बाद में ऊपर से लेकर नीचे तक इसी लेप से उनका अभिषेक किया जाता। आखिर में उन्हें नीम के लेप से नहलाकर मंदिर के अंदर लाया जाता है।
वेलुप्पुरम। तमिलनाडु में वर्नामुत्तु मरियम्मन नाम का एक मंदिर है। इसमें सबसे अनोखी परम्परा है चिली अभिषेक। अब आप सोच रहे होंगे कि चिली अभिषेक भला ये कैसी परम्परा है। वर्नामुत्तु मरियम्मन मंदिर तमिलनाडु के सबसे ब़डे जिले वेलुप्पुरम में विश्व प्रसिद्ध ऑरोविले इंटरनेशनल टाउनशिप (सिटी ऑफ डॉन) के पास एक गांव इद्यांचवाडी में स्थित है। यहां हर साल में 8 दिनों तक चलने वाला त्योहार मनाया जाता है।
इसमें लोगों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिये एक भव्य पूजन और प्रार्थना का आयोजन किया जाता है । जिसमे हजारों लोग शामिल होोते हैं । इसमें विदेशी पर्यटकों की संख्या भी शामिल होती है। इसमें एक अनोखी परम्परा "चिली अभिषेक" को निभाया जाता है। इस परम्परा के लिए मंदिर की ट्रस्ट में शामिल तीन ब़डे लोग पहले तो हाथ में पवित्र कंगन पहनकर पूरे दिन का व्रत रखते। इसके बाद उनके सिर के बालों का मुंडन किया जाता । मुंडन के बाद में देवताओं की तरह ही उन्हें भी पूजन स्थल पर बीच में बिठाया जाता और बाद में मंदिर के पुजारी उन तीनों को भगवान मानकर 108 सामग्रियों से अभिषेक करते। इन 108 सामग्रियों में कई तरह के तेल, इत्र, विभूति, कुचले हुये फल, चंदन, कुमकुम, हल्दी आदि के लेप होतो लेकिन सबसे ज्यादा दिलचस्प होता मिर्च का (चिली) का लेप।
पहले तो तीनों को मिर्च का ये लेप खिलाया जाता, उसके बाद में ऊपर से लेकर नीचे तक इसी लेप से उनका अभिषेक किया जाता। आखिर में उन्हें नीम के लेप से नहलाकर मंदिर के अंदर ले जाया जाता है। मंदिर के अंदर जाकर "धीमिति" का आयोजन होता है। जिसमें उन्हें जलते हुए कोयले पर चलाया जाता है । इद्यांचवाडी गांव के लोग बताते हैं कि अभिषेक की ये परम्परा पिछले 85 वर्षों से चली आ रही है। कहा जाता है कि 1930 में गांव के हरिश्रीनिवासन ने एक नीम के पे़ड से बाहर आते गोंद को देखा और इसे पी लिया। फिर, उसके सामने भगवान प्रकट हुए और वहां एक मंदिर का निर्माण करवाने को कहा। ग्रामीणों किसी भी रोग से पीडित ना होना प़डे इसके लिये प्रार्थना के हिस्से के रूप मिर्च से अभिषेक करने का आदेश दिया। हरिश्रीनिवासन के मरने के 19 साल पहले तक मिर्च से अभिषेक की ये परम्परा उन्हीं पर ही निभाई गयी थी।