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तंत्र द्वार के बीच शिव-शक्ति

पूरी दुनिया में ऐसी दूसरी जगह नहीं है जहां शिव-शक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Tue, 16 Aug 2016 02:37 PM (IST)Updated: Tue, 16 Aug 2016 02:43 PM (IST)

वाराणसी : श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह का शिखर महत्वपूर्ण है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्रीयंत्र से मंडित है। इसे श्रीयंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है। गर्भगृह के चार द्वार भी तंत्र की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

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पहला शांति द्वार, दूसरा कला द्वार, तीसरा प्रतिष्ठा द्वार और चौथा निवृत्त द्वार। इन चारों द्वारों युक्त गर्भगृह की पांच बार परिक्रमा करने से भक्तों को ऊपरी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। पूरी दुनिया में ऐसी दूसरी जगह नहीं है जहां शिव-शक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।

पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वादश ज्योतिलिर्ंगों में प्रमुख श्रीकाशी विश्वनाथ दो भागों में हैं। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) में विराजमान हैं इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है। देवी भगवती के दाहिने ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर भक्तों को तारते हैं।

बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ का ज्योतिलिर्ंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की दस महा विद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है। मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है।

यहां से प्रवेश करते ही पूर्व में किए पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।1अन्नपूर्णा देतीं भोजन, बाबा मुक्ति बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान हैं। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि नौ बजे जब बाबा की श्रृंगार आरती की जाती है तो वह राज वेश में होते हैं, इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं। बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में काशी में रहने वालों का पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।
त्रिशूल पर बसी है काशी

इतना ही नहीं भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन क्षेत्र, जहां कभी मंदाकिनी नदी और गोदौलिया क्षेत्र, जहां गोदावरी नदी बहती थी, इन दोनों के बीच बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गोदौलिया के बीच में ज्ञानवापी नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है, इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकती।


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