यहां कर्ण के मंदिर होने के कारण लोग इन्हें इष्टदेव मान कर्ण के सारे गुणों को भी अपना लिया है
ग्रामीण कर्ण को इष्टदेव मानने के कारण उन्होंने कर्ण के गुणों को भी अपना लिया है और गांव का हर व्यक्ति धार्मिक और दान पुण्य के कार्यों के लिए दान देता है।
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहां देवता निवास करते हैं। लेकिन यहां देवताओं के साथ ही महाभारत के पात्रों की भी पूजा होती है।
दरअसल उत्तरकाशी के जखोली में पहले दुर्योधन का मंदिर था। जिसे कुछ वर्ष पहले शिव मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया, लेकिन इस गांव में अभी भी सोने की परत चढ़ी एक कुल्हाड़ी है, जिसे लोग कौरव राजकुमार दुर्योधन की मानते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक ये मान्यताएं कई वर्षों से चली आ रही है। गांव में करीब 9 साल पहले एक मंदिर था। तब ग्राणीणों ने दुर्योधन से दूरी बनाने का फैसला किया क्योंकि इससे गांव की बदनामी हो रही थी।
दुर्योधन मंदिर से लगभग 50 किमी दूरी पर ही, दूसरे गांव में दानवीर कर्ण से जुड़े होने पर गर्व महसूस करते हैं। ग्रामीण कर्ण को इष्टदेव मानने के कारण उन्होंने कर्ण के गुणों को भी अपना लिया है और गांव का हर व्यक्ति धार्मिक और दान पुण्य के कार्यों के लिए दान देता है।
वहीं, गांव के प्रधान मनमोहन प्रसाद नौटियाल का कहना है कि, 'कर्ण हमारे आदर्श हैं और हमारे इष्टदेव हैं। हम उनके आदर्शों का पूरी तरह से अनुकरण करने की कोशिश करते हैं। गांव की कमिटी दहेज प्रथा को खत्म कर दिया है और पशु-बलि पर भी गांव में बैन है।'