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यहां शारीरिक, मानसिक रोगों के अलावा ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है

पवन पुत्र हनुमान का जीवन हिन्दू धर्म को मानने वाले अधिकतर लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है और ऐसा होना स्वाभाविक भी है। जैसा कि हम सभी जानते हैं उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर प्रभु श्री राम की सेवा में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। उनसे जुड़े हुए ऐसी कितनी

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2015 02:28 PM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2015 11:31 AM (IST)
यहां शारीरिक, मानसिक रोगों के अलावा ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है

पवन पुत्र हनुमान का जीवन हिन्दू धर्म को मानने वाले अधिकतर लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है और ऐसा होना स्वाभाविक भी है। जैसा कि हम सभी जानते हैं उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर प्रभु श्री राम की सेवा में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। उनसे जुड़े हुए ऐसी कितनी ही मान्यताएं है जिसे सुनकर हर कोई हैरान हो जाता है लेकिन इन मान्यताओं से परे संकटमोचन हनुमान से जुड़ी एक ऐसी ही धारणा भी जुड़ी हुई है क्या आप जानते हैं अविवाहित रहने के बाद भी श्री हनुमान का एक पुत्र भी था। उन्होंने आजीवन अपने बाल ब्रह्मचर्य का पालन किया फिर उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति के पीछे क्या रहस्य है और इतना ही नहीं भारत में उनके पुत्र मकरध्वज का मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है। आइए हम आपको बताते हैं उनकी और उनके पुत्र से जुड़ी हुई कहानी के बारे और उनके और उनके पुत्र के मंदिर से जुड़ी हुई दिलचस्प बातें

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ऐसी मान्यता है कि हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे। उस समय मेघनाद ने उन्हें पकड़ा और रावण के दरबार में पेश किया तब रावण ने उनकी पूंछ मेंं आग लगवा दी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से पूरी लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र पीड़ा हो रही थी। इसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे। उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी, जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम पड़ा मकरध्वज। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी थे। उसे अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया गया था

जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था। तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे और वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। उसके बाद मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। भारत में जहां अधिकतर देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के लिए मंदिरों का निर्माण किया जाता है ऐसे में हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज का मंदिर भी सभी भक्त जनों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है

हनुमान मकरध्वज मंदिर, भेंटद्वारिका, गुजरात

हनुमानजी व उनके पुत्र मकरध्वज का पहला मंदिर गुजरात के भेंटद्वारिका में स्थित है। यह स्थान मुख्य द्वारिका से दो किलोमीटर अंदर की ओर है. इस मंदिर को दांडी हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह वही स्थान है, जहां पहली बार हनुमानजी अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे. मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही सामने हनुमान पुत्र मकरध्वज की प्रतिमा है. वहीं पास में हनुमानजी की प्रतिमा भी स्थापित है.

हनुमान मकरध्वज मंदिर, ब्यावर, राजस्थान

राजस्थान के अजमेर से 50 किलोमीटर दूर जोधपुर मार्ग पर स्थित ब्यावर में हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज का मंदिर स्थित है. यहां मकरध्वज के साथ हनुमानजी की भी पूजा की जाती है। प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को देश के अनेक भागों से श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं. ब्यावर के विजयनगर-बलाड़ मार्ग के मध्य स्थित यह प्रख्यात मंदिर त्रेतायुगीन संदर्भों से जुड़ा हुआ है. यहां शारीरिक, मानसिक रोगों के अलावा ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है. साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं…


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