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सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च

भगवान सूर्य सृष्टि के आत्मा हैं। उनकी असीम ऊर्जा से ही सृष्टि संचालित होती है। वे जगत के संचालनकर्ता हैं। अगर वे एक पल भी न रहें तो सृष्टि समाप्त हो जाएगी। उनकी ऊर्जा से ही जगत ऊर्जावान होता है और विश्व का कल्याण होता है। सूर्य अखण्ड प्रकाश पुंजों से ब्रह्मण्ड को आलोकित करता है। सूर्य की किरणों जगत के सभी पद्धार्थो में रस और शक्ति प्रदान कर

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 29 Oct 2014 02:15 PM (IST)Updated: Wed, 29 Oct 2014 02:15 PM (IST)

भगवान सूर्य सृष्टि के आत्मा हैं। उनकी असीम ऊर्जा से ही सृष्टि संचालित होती है। वे जगत के संचालनकर्ता हैं। अगर वे एक पल भी न रहें तो सृष्टि समाप्त हो जाएगी। उनकी ऊर्जा से ही जगत ऊर्जावान होता है और विश्व का कल्याण होता है।

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सूर्य अखण्ड प्रकाश पुंजों से ब्रह्मण्ड को आलोकित करता है। सूर्य की किरणों जगत के सभी पद्धार्थो में रस और शक्ति प्रदान करती हैं। आकाश में सूर्य के विराजमान होने से ही अग्नि, वायु एवं जल अपनी-अपनी शक्ति का सही तरीके से प्रदर्शन कर पाते हैं। सौरमंडल ही वह केन्द्र है, जो अपने आकर्षण से देवलोक एवं पितृलोक आदि का समन्वित कार्य संभाल रहा है। हर धर्म ग्रंथ में सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है। चराचर जगत के लिए सूर्य द्वारा किए गए परोपकार के कृतज्ञता स्वरूप छठ महाव्रत किया जाता है। कृतज्ञता का ज्ञापन हमेशा काम के बाद होता है, इसलिए दिन ढलने के बाद अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अ‌र्घ्य दिया जाता है। वहीं उगते हुए सूर्य की पूजा सभी जगह होती है। हमारे यहां भी सप्तमी को उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है।

देवम् भुत्वा देवम् यजेत्। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि देवता की तरह बनकर ही देवताओं की पूजा करनी चाहिए। हमारे यहां पूजा करने से पहले स्नान करना अनिवार्य है। साथ ही स्नान के बाद नया साफ एवं शुद्ध वस्त्र धारण करने का प्रावधान किया गया है। यही कारण है कि व्रती हमेशा अ‌र्घ्य देने के लिए नए वस्त्र धारण करते हैं।


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