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कहते हैं इस मंदिर में एक बार आने पर, भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है

चांपा में जमीदार परिवार द्वारा स्थापना की गई मां सम्लेश्वरी की महिमा बड़ी निराली है। दांपत्य जीवन में प्रवेश से पहले यहां हर जोड़ा आकर नतमस्तक होता है। मां समलेश्वरी से आर्शीवाद लेने के बाद ही नवदंपति अपने नए गृहस्थी की शुरूआत करते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2015 03:40 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2015 03:49 PM (IST)
कहते हैं इस मंदिर में एक बार आने पर, भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है

चांपा में जमीदार परिवार द्वारा स्थापना की गई मां सम्लेश्वरी की महिमा बड़ी निराली है। दांपत्य जीवन में प्रवेश से पहले यहां हर जोड़ा आकर नतमस्तक होता है। मां समलेश्वरी से आर्शीवाद लेने के बाद ही नवदंपति अपने नए गृहस्थी की शुरूआत करते हैं।

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तीन दशक से सभी अधिक समय से यहां नवरात्रि में नौ दिनों तक विधि अनुसार देवी भागवत का आयोजन कराया जाता है। सम्लेश्वरी देवी के दरबार में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यहां देवी की नवरात्रि पर्व में तिथि अनुसार भोग लगाया जाता है, जिसका अपना फल भी है। प्रतिपदा को घी का भोग लगाया जाता है। इससे रोग मुक्ति होती है। द्वितीया को यहां शक्कर का भोग लगता है। इससे दीर्घायु की प्राप्ति होती है। तृतीया को दूध का भोग लगाने से सभी प्रकार के दुख दूर होते हैं। चतुर्थी को मालपुआ के भोग से विघ्न क्लेश पास नहीं फटकता। वहीं पंचमी को केला का भोग लगाने से बुद्घि कौशल में वृद्घि होती है। षष्ठी को मधु के भोग से शांति प्राप्ति होती है। सप्तमी को गुड़ के भोग से शोक दूर होता है। अष्टमी को नारियल का भोग लगाने से ताप शांति मिलती है। नवमी को मां को लाइ का भोग लगाने से लोक-परलोक में सुख मिलता है। यहां महाअष्टमी की रात में नींबू की माला समर्पित की जाएगी।

सम्लेश्वरी व्यवस्थापक समिति के संरक्षक राजमहल चांपा कुमार साहब रूद्रेश्वर शरण सिंह तथा अध्यक्ष कुंवर भिवेन्द्र बहादुर सिंह है। चांपा मेंसम्लेश्वरी देवी की प्राण प्रतिष्ठा और स्थापना का इतिहास काफी रोचक है। 1760 में मंदिर निर्माण एवं प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा तत्कालीन जमींदार विश्वनाथ सिंह ने कराया। राजमहल चांपा के अनुसार पूर्व में हसदेव नदी का पूर्वी भू-भाग उड़ीसा संबलपुर रियासत के अंतर्गत था। पश्चिमी भू-भाग रतनपुर रियासत का क्षेत्र था किसी बात को लेकर उस समय एकाएक संबलपुर रियासत द्वारा रतनपुर पर चढ़ाई कर दी गई। ऐसी विकट परिस्थिति में रतनपुर नरेश के सामने एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी, जिसमें चांपा जमींदारविश्वनाथ सिंह के पूर्वजों ने रतनपुर का साथ दिया। दोनों रियासतों में घमासान युद्घ के बाद अंततः विजयश्रीरतनपुर को मिली। युद्घ में चांपा जमींदार के पूर्वजों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

विजय के पश्चात जीता हुआ भाग विश्वनाथ सिंह के पूर्वजों को प्राप्त हुआ। यहीं से चांपा जमींदारी की स्थापना हुई। इसे मदनपुर 84 के नाम से जाना जाता है। जमींदार परिवार का मुख्य निवास ग्राम पहरिया था। जमींदार परिवार द्वारा मदनपुर हसदेव नदी के पश्चिम भाग में महामायामंदिर का निर्माण कराया गया। चांपा को राजधानी बनाई गई। नदी के पूर्व भाग में स्थित चांपा चूंकि उड़ीसा संबलपुर से जीता हुआ भू-भाग था, जो चांपा जमींदार के अधीन था। वहां की आस्था न टूटे इस कारण संबलपुर रियासत की सम्लेश्वरी देवी मंदिर का जमींदार परिवार ने चांपा में निर्माण कराया। साथ ही उन्हें कुलदेवी माना गया। प्रारंभ में मां सम्लेश्वरी की प्रतिस्थापना के समय काष्ठ की प्रतिमा स्थापित की गई और बाद में पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई। तब से अब तक अनवरत रूप से मंदिर में क्वांर नवरात्रि एवं चैत्र नवरात्रि पर्व का आयोजन किया जाता है।


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