मान्यता है कि यहां देवी पार्वती की दया से शिवभक्तों के संकट टल जाते हैं
यहां शिव की वंदना मूलवर कपालेश्वर या अम्मान कपालेश्वर के नाम से की जाती है। शिव यहां लिंगरूप में विराजमान हैं। पार्वती की कृपा से भक्त के जीवन में आने वाले दुख दूर हो जाते हैं।
यहां शिव की वंदना मूलवर कपालेश्वर या अम्मान कपालेश्वर के नाम से भी की जाती है। भगवान शिव यहां लिंगरूप में विराजमान हैं। शिव की तरह ही देवी पार्वती की कृपा से भी भक्त के जीवन में आने वाले शोक-संताप दूर हो जाते हैं। एक मंदिर के बारे में ऐसी दृढ़ मान्यता है कि यहां देवी पार्वती की दया से शिवभक्तों के संकट टल जाते हैं। इस मंदिर का नाम कपालेश्वर मंदिर है जो तमिलनाडु के मायलापुर, चेन्नई में स्थित है।
यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है। कहा जाता है कि मूल कपालेश्वर तो समुद्र में समा चुका है। इस मंदिर का निर्माण बाद में हुआ। यहां शिव की वंदना मूलवर कपालेश्वर या अम्मान कपालेश्वर के नाम से भी की जाती है। भगवान शिव यहां लिंगरूप में विराजमान हैं।
कपालेश्वर मंदिर महात्मय
दक्षिण भारत का पुराणों में सबसे ज्यादा जिक्र है और शायद यही वजह है कि यहां सबसे अधिक एक से एक खूबसूरत मंदिर है। मंदिर भी कोई ऐसा वैसा नहीं इन सभी के पीछे भी कई कही कई अनकही कहानियां मिलती है। कपालेश्वर मंदिर मायलापुर चेन्नई तमिलनाड़ु में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव का है जिसे 1250 ईसवी में बनाया गया। महाशिवरात्रि पर यहां भक्त बड़ी संख्या में भगवान के दर्शन करने आते हैं।
यह काफी पुराना मंदिर है। मूल कपालेश्वर मंदिर समुद्र की अनंत गहराईयों में समा चुका था। बाद में यह मंदिर पुनः बनवाया गया। जिस तरह कार्तिकेय जी को विनेगर, अन्नामलाई, मुरुगन, सेनसेवारा के रूप में पूजा जाता है वैसे ही यहां कपालेश्वर महादेव को मूलवर कपालेश्वर और अम्मान कपालेश्वर के रूप में भी पूजा जाता है।
यहां कपालेश्वर महादेव का शिवलिंग के रूप में हैं। मंदिर में ही देवी पृथ्वी की मूर्ति भी है, जिसे भक्त पूरी आस्था से पूजते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत में प्रसिद्ध भगवान मुरुगन जोकि भगवान शिव के पुत्र हैं उनकी प्रतिमा भी मौजूद है।
मंदिर में एक छोटा सा तालाब है। जिसके चारों तरफ रंगीन गलियारे हैं। दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में बने इस मंदिर का सौंदर्य देखते ही बनता है। मंदिर में अमूमन शास्त्रीय संगीत और नृत्य की प्रस्तुतियां होती रहती हैं।
पौराणिक ग्रंथों में कपालेश्वर मंदिर से जुड़ी एक कथा का उल्लेख मिलता है। एक बार मां उमा यानी पार्वती ने भगवान शिव के मंतिर 'ऊं नमः शिवाय' में से 'नमः शिवाय' का अर्थ जानना चाहा।
तब उन्होंने कपालेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते समय भजन गाना शुरू किया। जब मां पार्वती भजन तेज आवाज में गा रही थीं तब उनके सामने एक मोर ने नृत्य करना शुरू कर दिया।
वह मोर शापित था। मां पार्वती ने उस मोर के नृत्य से काफी प्रसन्न हुई और उन्होंने उस मोर का शाप से मुक्त कर दिया। तब मां ने भगवान शिव के शिवलिंग को एक पेड़ के नीचे स्थापित किया। उस समय वहां कोई शहर नहीं था। हालांकि मां पार्वती को नमः शिवाय का अर्थ मिल गया था।
तब मां पार्वती ने ही उस मोर के मानव रूप को करापवली नाम दिया और उसके अनुरोध पर वहां एक शहर की स्थापना की जिसे मायलापुर कहा गया। आदिकाल से ही इस मंदिर में शास्त्रीय संगीत और नृत्य की परंपरा चली आ रही है।