Move to Jagran APP

साझी विरासत की नगरी है राम की अयोध्या

जाने-माने संत एवं चिंतक महंत कौशलकिशोरशरण फलाहारी के अनुसार साझी विरासत अयोध्या की गौरव है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अयोध्या कभी परम एवं एकमेव सत्य का साक्षात्कार करने में सफल रही और जहां दुनियावी भेदभाव से ऊपर उठकर लोग एकात्म भाव से प्रभु के सच्चे अनुचर की तरह आगे बढ़ रहे थे। यद्यपि आज की अयोध्या से उन्हें शिक

By Edited By: Published: Tue, 08 Apr 2014 11:40 AM (IST)Updated: Tue, 08 Apr 2014 11:47 AM (IST)
साझी विरासत की नगरी है राम की अयोध्या

अयोध्या। जाने-माने संत एवं चिंतक महंत कौशलकिशोरशरण फलाहारी के अनुसार साझी विरासत अयोध्या की गौरव है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अयोध्या कभी परम एवं एकमेव सत्य का साक्षात्कार करने में सफल रही और जहां दुनियावी भेदभाव से ऊपर उठकर लोग एकात्म भाव से प्रभु के सच्चे अनुचर की तरह आगे बढ़ रहे थे। यद्यपि आज की अयोध्या से उन्हें शिकायत है कि वह भी किसी सामान्य नगरी की तरह जाति, राजनीति, संप्रदाय, लिंग, रंग आदि से ग्रस्त है।

loksabha election banner

रघुवरशरण, अयोध्या-यह जानना रोचक है कि अयोध्या भगवान राम की नगरी के रूप में गौरवान्वित होने के साथ साझी विरासत की नगरी है। यहां भगवान राम और उनकी उपासना परंपरा रग-रग में व्याप्त है ही। सनातन संस्कृति के अन्य आयामों से लेकर जैन, बौद्ध, सिख और सूफी परंपरा तक की जड़ें व्याप्त हैं। जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव अयोध्या राजपरिवार के थे। उनकी माता का नाम मरुदेवी एवं पिता का नाम नाभि राय था। कोई पांच हजार वर्ष बाद अयोध्या में प्रथम र्तीथकर की विरासत जीवंत है। रायगंज मोहल्ले में न केवल उनका भव्य मंदिर और विशाल प्रतिमा स्थापित है बल्कि कटरा मुहल्ले में भी उनका मंदिर है। अयोध्या अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ एवं अनंतनाथ के रूप में चार अन्य जैन र्तीथकरों की भूमि के रूप में प्रतिष्ठित है।

प्रति वर्ष अयोध्या आने वाले बड़ी संख्या में जैन मतावलंबियों से भी यह परिभाषित होता है कि यह नगरी उनकी आस्था की प्रधान केंद्र है। बौद्ध परंपरा में भी अयोध्या का स्थान महत्वपूर्ण है। बौद्ध ग्रंथों से ज्ञात होता है कि भगवान बुद्ध जिस शाक्य कुल के थे, उसकी दो राजधानी थी-कपिलवस्तु और साकेत। साकेत का समीकरण अयोध्या से स्थापित किया जाता है। आज भी अयोध्या का साकेत नाम किसी से छिपा नहीं है। बौद्ध ग्रंथ दीपवंश से ज्ञात होता है कि बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद 45 वर्षो तक धर्मोपदेश किया और उनमें से 16 वर्षावास उन्होंने अयोध्या में किया। अनेक बौद्ध वन एवं विहार भी अयोध्या में होने का वर्णन मिलता है। बुद्ध के करीब पांच सौ वर्ष बाद बौद्ध धर्म की महायान शाखा के अग्रणी आचार्य अश्वघोष अयोध्या के ही थे। हालांकि समृद्ध एवं सारगर्भित अतीत के बावजूद अयोध्या में बौद्ध परंपरा का वर्तमान हाशिए पर है। सिखों की चर्चा के बिना रामनगरी की संस्कृति में समाहित सतरंगी छटा का परिचय नहीं पूरा होता। प्रथम, नवम् एवं दशम् सिख गुरु समय-समय पर अयोध्या आए और नगरी के प्रति आस्था निवेदित की। गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड एवं गुरुद्वारा गोविंद धाम के रूप में सिख परंपरा की विरासत अभी भी जीवंत है। यद्यपि रामनगरी में मुट्ठी भर ही सिख हैं पर वर्ष 2002 के स्थानीय निकाय चुनाव में अयोध्या नगरपालिका का अध्यक्ष चुने जाने के साथ सरदार महेंद्र सिंह ने नगरी की सांस्कृतिक मिजाज को भी प्रतिबिंबित किया। भले ही अयोध्या का झगड़ा देश भर में तनाव का सबब बना पर इस अतीत को नहीं बदला जा सकता कि अयोध्या इस्लाम के लिए भी श्रद्धास्पद रही है।

मणिपर्वत के समीप स्थित शीश पैगंबर की मजार, स्वर्गद्वार स्थित सैय्यद इब्राहिम शाह की मजार, शास्त्री नगर स्थित नौगजी पीर की मजार से इस रुझान की झलक मिलती है। इस्लाम की परंपरा में अयोध्या को मदीनतुल अजोधिया के रूप में भी संबोधित किए जाने का जिक्र मिलता है। नगरी की ही दहलीज पर स्थित पूर्वाचल के सबसे बड़े महाविद्यालय के रूप में प्रतिष्ठित साकेत महाविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में अफसर मेंहदी की जीत ने भी रामनगरी की साझी विरासत को जीवंत किया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.