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यहां भगवान शंकर व माता पार्वती की शादी की रस्म पुरोहित पूरा कराते हैं

मंदिर की परंपरा के अनुसार, इस रात बाबा का शृंगार नहीं होता है। रात दस बजे से दो बजे तक महापूजा की जाती है, इसके बाद सुबह छह बजे तक आम भक्तों के लिए पट खोल दिया जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 21 Feb 2017 11:13 AM (IST)Updated: Tue, 21 Feb 2017 11:28 AM (IST)
यहां  भगवान शंकर व माता पार्वती की शादी की रस्म पुरोहित पूरा कराते हैं
यहां भगवान शंकर व माता पार्वती की शादी की रस्म पुरोहित पूरा कराते हैं

शिव-पार्वती का महामिलन है महाशिवरात्रि महाशिवरात्रि पर काशी, देवघर, जम्मू आदि में शिवमय हो जाता है वातावरण...

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माना जाता है कि भगवान आशुतोष को काशी सर्वाधिक प्रिय है। महाशिवरात्रि को शिव-पार्वती महामिलन के साथ ही द्वादशज्योतिर्लिंगों के प्राकट्य का दिन भी माना जाता है , लेकिन काशी के लोग इसे भगवान शिव के विवाहोत्सव के रूप में ही मनाते हैं। शिव विवाह में लोग इस मनोभाव से सम्मिलित होते हैं, जैसे यह उत्सव उनके अपने घर का ही हो। शिव-विवाह के रंग में रंगे भक्तगण ठंडाई व भांग की तरंग में मगन होकर झूमते-

नाचते नजर आते हैं। इस दिन यहां चारों ओर हर-हर महादेव व ओम नम: शिवाय की अनुगूंज रहती है। अक्खड़पन और फक्कड़पन शिवभक्तों के जनजीवन का रस है। किसी ने लिखा है-

चना चबैना, गंग जल जो पुरवे करतार।।

काशी कबहुं न छोड़िए विश्वनाथ दरबार।।

पुराणों के अनुसार, विवाह के पश्चात भगवान शिव ने अपने गणों, नंदी तथा माता पार्वती के साथ इसी दिव्य पुरी काशी में निवास किया। पार्वती पर्वत-पुत्री हैं, जबकि महादेव को जम्मू-कश्मीर में दामाद माना जाता है। बर्फीला मौसम समाप्त होने के साथ ही घरों में भगवान शिव के आवभगत की तैयारियां होने लगती हैं। जम्मू में शालामार स्थित श्री रणवीरेश्वर मंदिर से शिवरात्रि से एक दिन पूर्व भव्य शिव-बारात निकाली जाती है। इस बारात में भक्त भूत, प्रेत के रूप में सज-धज कर तैयार होते हैं और शिव-पार्वती के ब्याह का गान करते हैं। मानतलाई को माता पार्वती का मायका माना जाता है, जहां आज भी पार्वती का ताल और मंदिर मौजूद है। वहीं

कश्मीरी समुदाय में भगवान शिव की वटुक के रूप में पूजा की जाती है। पीतल के इन वटुकों में अखरोट भरकर पानी में भिगोए जाते हैं। यही है शिवरात्रि का प्रसाद। कश्मीरी समुदाय में आज भी बेटियां शिवरात्रि से तीन दिन पहले अपने मायके सिर धोने पहुंचती हैं और लौटते हुए उन्हें नमक, दही, रुपये और सुहाग चिह्न अटहोरू दिए जाते हैं।

यह पर्व मनुष्यों को प्रकृति से और प्रत्येक प्राणी को एक-दूसरे से जोड़ता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा बैद्यनाथ की चार प्रहर की पूजा होती है। रात्रि प्रहर की पूजा में शिर्वंलग पर्र ंसदूर अर्पित होता है। भगवान शंकर व माता पार्वती की शादी की रस्म पुरोहित पूरा कराते हैं। मंदिर की परंपरा के अनुसार, इस रात बाबा का शृंगार नहीं होता है। रात दस बजे से दो बजे तक महापूजा की जाती है, इसके बाद सुबह छह बजे तक आम भक्तों के लिए पट खोल दिया जाता है। इसके बाद मंदिर का पट बंद हो जाता है, जो नौ

बजे खुलता है।

वाराणसी से रवींद्र प्रकाश त्रिपाठी, जम्मू से योगिता यादव व देवघर से आरसी सिन्हा


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