ज्वालामुखी शक्तिपीठ, यहां मूर्ति नहीं ज्योति की होती है पूजा
चट्टान में जल रही ज्योति अपने आप जलती हैं। इसे कोई जलाता नहीं है। यह जल कैसे रही हैं। अनसुलझी पहेली है। इसे देखने वाला हैरान रह जाता है।
By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 29 Mar 2017 03:38 PM (IST)Updated: Thu, 30 Mar 2017 09:54 AM (IST)
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। आदिशक्ति मां दुर्गा की उपासना का महापर्व नवरात्र शुरू हो गया है। देश के विभिन्न शक्तिपीठों में मां भगवती की आराधना की जा रही है। शारदीय नवरात्रि के दौरान हम आपको विभिन्न शक्तिपीठों से जुड़ी कई मान्यताएं और पौराणिक कथाओं से परिचित कराएंगे। अपनी दिव्यता के लिये ऐसा ही एक शक्तिपीठ प्रसिद्ध है, जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित है।
ज्वालामुखी शक्तिपीठ विश्व में पहला ऐसा मंदिर है, जहां प्रतिमा की पूजा नहीं होती। मंदिर में सात ज्योतियां अनादिकाल से विराजमान हैं। मंदिर में श्रद्धालु इन ज्योतियों की ही पूजा करते हैं। यही नहीं मंदिर के बारे में एक और अनोखी बात यह भी है कि यहां रोजाना पांच बार आरती होती है। आम तौर पर मंदिरों में सुबह शाम को ही आरती होती है। मंदिर में साक्षात ज्योति, जो कि अनादिकाल से यहां विराजमान है उसकी पूजा होती है। चट्टान में जल रही ज्योति अपने आप जलती हैं। इसे कोई जलाता नहीं है। यह जल कैसे रही हैं। अनसुलझी पहेली है। इसे देखने वाला हैरान रह जाता है। रोचक तथ्य यह है कि आज तक कई बार इन ज्योतियों की ताकत के परीक्षण हुये। मुगल सम्राट अकबर ने मां ज्वालादेवी की परीक्षा के लिए ज्योतियों को बुझाने के लिये यहां पर पानी डलवाया, लेकिन ज्योतियां ज्यों की त्यों प्रज्जवल्लित रहीं।
यही नहीं पिछले 50 से अधिक सालों से यहां आसपास की पहाड़ियों में तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम ने कई परीक्षण किये। उन्हें भी नाकामी ही मिली। विश्व में शायद यही ऐसा मंदिर है, जहां प्रतिमा की पूजा नहीं होती । जल रही ज्योति ही शक्ति का साक्षात् स्वरूप है ।
मंदिर में पांच बार होती है आरती
मंदिर की एक और रोचक बात यह है कि यहां पांच बार आरती होती है। सुबह ब्रह्ममुहूर्त में पहली आरती होती है। जिसमें मालपुआ, खोआ, मिस्री का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसे मंगल आरती कहते हैं। दूसरी आरती पहली आरती से एक घंटा बाद होती है। इसमें पीले चावल व दही का भोग लगाया जाता है। तीसरी आरती दोपहर के समय की जाती है। इसमें चावल छह मिश्रित दालों व मिठाई का भोग लगाया जाता है। चौथी आरती सांयकाल में की जाती है। इसमें पूरी चना और हल्वा का भोग लगता है। रात करीब नौ बजे शयन आरती होती है। जिसमें माता के शयनकक्ष में सौंदर्यलहरी के मधुर गान के बीच सोलह सिंगार करने के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं।
कैसे पहुंचे ज्वालामुखी
यहां पहुंचना बेहद आसान है। यह जगह वायु मार्ग, सड़क मार्ग और रेल मार्ग से अच्छी तरह जुड़ी हुई है।
वायु मार्ग
ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है, जो कि ज्वालाजी से 46 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस सुविधा उपलब्ध है।
रेल मार्ग
रेल मार्ग से जाने वाले यात्री पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मरांदा होते हुए पालमपुर आ सकते है। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग
पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरों से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। यात्री अपने निजी वाहनों व हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा भी वहां तक पहुंच सकते हैं। दिल्ली से ज्वालाजी के लिए दिल्ली परिवहन निगम की सीधी बस सुविधा भी उपलब्ध है।
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