यहां कालीमठ में काली की कृपा से हुई थी कालिदास को ज्ञान की प्राप्ति
बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा मार्ग के मुख्य पड़ाव श्रीनगर से महज 15 किमी की दूरी पर स्थित सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर यात्राकाल के दौरान हमेशा ही देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति का केंद्र रहता है। शक्ति पीठों में कालीमठ का वर्णन पुराणों में मिलता है। य्
बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा मार्ग के मुख्य पड़ाव श्रीनगर से महज 15 किमी की दूरी पर स्थित सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर यात्राकाल के दौरान हमेशा ही देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति का केंद्र रहता है। शक्ति पीठों में कालीमठ का वर्णन पुराणों में मिलता है।
यहीं मां काली की कृपा से महाकवि कालिदास को ज्ञान की प्राप्ति हुई। मान्यता है कि कालीमठ मंदिर से ही मूर्ति का सिर वाला भाग बाढ़ से अलकनंदा नदी में बहकर धारी गांव नामक स्थान पर आ गया।
धार्मिक मान्यता के अनुसार गांव की धुनार जाति व स्थानीय ग्रामीणों ने मिलकर सिर वाले भाग को समीपवर्ती ऊंची चट्टान पर स्थापित किया। मां काली कल्याणी की यह मूर्ति वर्तमान में अलकनंदा नदी पर जल-विद्युत परियोजना के निर्माण के चलते नदी से ऊपर मंदिर बनाकर स्थापित की गई है।
धारी गांव के पांडे ब्राहमण मंदिर के पुजारी हैं। जनश्रुति है कि यहां मां काली प्रतिदिन तीन रूप प्रात:काल कन्या, दोपहर युवती व शाम को वृद्धा का रूप धारण करती है। प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्र में हजारों श्रद्धालु अपनी मनौतियों के लिए मंदिर में आते हैं। इसके अलावा चारधाम यात्रा के दौरान भी हर रोज सैकड़ों की तादात में श्रद्धालुगण मंदिर पहुंचते हैं।
कपाट खुलने का समय : वर्ष भर पूजा का प्राविधान।
मौसम : दिसंबर-जनवरी की सर्दी को छोड़कर वर्षभर सुहावना।
पहनावा : दिसंबर-जनवरी में ठंड के मद्देनजर गर्म कपड़ों की आवश्यकता। बाकी महीनों में हल्के कपड़े।
यात्री सुविधा : चारधाम यात्रा मार्ग के मध्य स्थित होने के कारण यात्रा के सभी पड़ावों पर प्राइवेट, जीएमवीएन व बीकेटीसी के गेस्ट हाउस।
वायु मार्ग : 145 किमी दूर जौलीग्रांट हवाई अड्डा।
रेल मार्ग : 115 किलोमीटर दूर ऋषिकेश निकटतम रेलवे स्टेशन।
सड़क मार्ग : हरिद्वार, ऋषिकेश व देहरादून से मां धारी
देवी मंदिर तक आसानी से छोटे-बडे़ वाहनों की उपलब्धता। सड़क मार्ग से करीब 300 मीटर की दूरी पर सिद्धपीठ।