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माना जाता है कि इस मंदिर में जो सर नहीं झुकाता वो जीवित नहीं बचता

धार्मिक स्थल को लेकर आपने कई मान्यता और पंरपरा के बारे में सुना होगा। आज आपको एक ऎसे धार्मिक स्थल के बारे बता रहे है जिसे आस्था कहे या विश्वास लेकिन लोग आज भी मानते है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के एनएच-5 के किनारे स्थित एक तरंडा देवी का

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 10 Feb 2016 03:29 PM (IST)Updated: Thu, 11 Feb 2016 09:26 AM (IST)

धार्मिक स्थल को लेकर आपने कई मान्यता और पंरपरा के बारे में सुना होगा। आज आपको एक ऎसे धार्मिक स्थल के बारे बता रहे है जिसे आस्था कहे या विश्वास लेकिन लोग आज भी मानते है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के एनएच-5 के किनारे स्थित एक तरंडा देवी का मंदिर है। यहां से गुजरने वाली हर गाड़ी यहां रुकती है। रामपुर से करीब 40 किमी दूर इस मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक है। माना जाता है कि इस मंदिर में माथा टेके बिना कोई यहां से नहीं जाता। अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो वह कभी यहां से वापस न जा पाएंगा।

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अगर जिसने आशीर्वाद नही लिया वो इस रास्ते से लौट के कभी वापस नही आ पायेगा। इस मंदिर की देखरेख अब सेना ही करती है। सेना के जवान ही यहां पूजा पाठ का काम संभालते हैं। रामपुर से करीब 40 किमी दूर इस मंदिर के पीछे एक कहानी है।1962 में भारत का चीन से युद्घ हुआ था। युद्घ खत्म होने पर सेना ने यहां के रास्ते से रोड बनाने की सोची ताकि बॉर्डर तक सेना को गोला बारूद और अन्य सामान पहुंचाया जा सके। कहा जाता है कि पहले रोड सिर्फ रामपुर तक ही था। 1963 में सेना के GREF विंग (अब इस विंग को बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन कहा जाता है) ने यहां सड़क बनाने का काम शुरू किया। यहां तक जब पहुंचे तो रोड आगे बनाना बहुत मुश्किल हो गया। क्योंकि हर रोज यहां चट्टानों के गिरने से किसी न किसी मजदूर की मौत हो जाती थी। इससे सेना के लोग भी काफी परेशान हो गए।इस बीच तरंण्डा गांव के लोग गांव में बने मंदिर मां चंद्रलेखा के पास पहुंचे। देवी ने बताया कि यहां पर किसी शक्ति का वास है। मैं इस जगह स्थापित होना चाहती हूं। यहां मेरे नाम से मंदिर बनाओ सब कुछ ठीक हो जाएगा। बस फिर क्या था सेना के लोगों ने यहां मंदिर बनवाने का काम शरू करवाया और फिर सब कुछ ठीक हो गया।

1965 में मां का मंदिर यहां स्थापित कर दिया गया। वहीं, दूसरी ओर तरंडा मंदिर कमेटी के अध्यक्ष चंपे लाल नेगी का कहना है कि उन्हें भी बुजुर्गों से इस बारे में पता चला था। मंदिर की देखरेख अब सेना ही करती है। सेना के जवान ही यहां पूजा पाठ का काम संभालते हैं। यहां से गुजरने वाली हर गाड़ी यहां रुकती है। उसके बाद सब यहां मां के मंदिर में माथा टेकते हैं तब आग बढ़ते हैं ताकि कोई अनहोनी न हो।


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