यहां शिव ने बूढ़े व्यक्ति के रूप में दर्शन दिये
बूढ़ा केदार सबसे प्राचीन केदार है। जब सड़क सुविधा नहीं थी, तब केदारनाथ धाम पहुंचने का यही पैदल मार्ग था और केदारनाथ धाम की यात्रा से पहले बूढ़ा केदार के दर्शन जरूरी थे। बूढ़ा केदार धाम बाल गंगा व धर्म गंगा नदी के मध्य स्थित है। पुराणों में उल्लिखित है कि गोत्र हत्या से मुक्ति पाने के लिए पांडव जब इस मार्ग से स्वर्गारोहण पर जा रहे थे
बूढ़ा केदार सबसे प्राचीन केदार है। जब सड़क सुविधा नहीं थी, तब केदारनाथ धाम पहुंचने का यही पैदल मार्ग था और केदारनाथ धाम की यात्रा से पहले बूढ़ा केदार के दर्शन जरूरी थे। बूढ़ा केदार धाम बाल गंगा व धर्म गंगा नदी के मध्य स्थित है।
पुराणों में उल्लिखित है कि गोत्र हत्या से मुक्ति पाने के लिए पांडव जब इस मार्ग से स्वर्गारोहण पर जा रहे थे तो बूढ़ा केदार में शिव ने उन्हें बूढ़े व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे। बूढ़ा केदार पर शिवा से आशीर्वाद लेकर ही पांडव स्वर्गारोहण के लिए निकले। शिव के बूढ़े रूप में दर्शन देने के कारण ही इस स्थान का नाम बूढ़ा केदार पड़ा।
बूढ़ा केदार मंदिर के अंदर एक विशाल शिला है, जबकि मंदिर के कुछ दूरी पर ही दोनों नदियों बाल गंगा और धर्म गंगा का संगम है। यहां पर स्नान करना पुण्यदायी माना गया है। यहां इन दोनों नदियों के संगम पर आरती भी की जाती है।
बूढ़ा केदार मंदिर-
कपाट खुलने का समय: यहां
सालभर कपाट खुले रहते हैं।
मौसम: अन्य जगहों की भांति
यहां का मौसम कुछ ठंडा है।
बारिश होने पर ठंड काफी बढ़
जाती है।
पहनावा: अप्रैल से अगस्त तक
साधारण वस्त्र। सितंबर के बाद
ऊनी वस्त्र।
यात्री सुविधा: पूर्व में यहां पर
धर्मशालाएं बनाई गई थी, जो
अब जीर्ण-शीर्ण हो गई हैं।
यात्रियों को यहां होटलों में ही ठहरना पड़ता है।
वायु मार्ग: देहरादून स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डा
रेल मार्ग: ऋषिकेश व देहरादून तक ही यह सुविधा है।
सड़क मार्ग: ऋषिकेश व नई टिहरी से बस के जरिए बूढ़ा केदार पहुंचा जा सकता है। घनसाली से यहां के लिए जीप सुविधा भी है।