हम्पी एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र भी रहा है
हम्पी एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र भी रहा है। मिथकों की बात करें, तो रामायण कथा के अनुसार, भगवान राम और लक्ष्मण जब मां सीता की तलाश में भटक रहे थे, तो वह किष्किंधा इलाके में वहां के शासक वानर भाइयों वाली और सुग्रीव की तलाश में पहुंचे थे। इस इलाके का एक
पत्थरों का एक स्वप्नलोक
आपको इतिहास, पुरातत्व व विरासत से लगाव है और ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करने में मजा आता है, तो
दक्षिण भारत में हम्पी आपके लिए पसंदीदा डेस्टिनेशन हो सकता है। हम्पी कर्नाटक की तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित एक प्राचीन गौरवशाली साम्राज्य विजयनगर का अवशेष है।
प्राचीन स्मारकों का यह केंद्र उत्तरी कर्नाटक के बेल्लारी जिले में बेंगलुरु से करीब 353 किमी., बेल्लारी से 74
किमी. और हॉसपेट से 13 किमी. की दूरी पर स्थित अब एक गांव है। हम्पी को यूनेस्को ने भारत में स्थित विश्व
विरासत का दर्जा दिया है। इस गांव में आज भी विजयनगर साम्राज्य के तमाम अवशेष हैं। इतिहास और पुरातत्व के लिहाज से हम्पी एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, इसलिए इसके दक्षिण भारत का बेहद लोकप्रिय पर्यटन केंद्र होने में कोई अचरज की बात नहीं है।
गौरवशाली इतिहास
हम्पी को प्राचीन काल में कई नामों से जाना जाता था, जैसे- पम्पा क्षेत्र, भास्कर क्षेत्र, हम्पे, किष्किंधा क्षेत्र
आदि। हम्पी का इतिहास काफी पुराना है। हम्पीनाम असल में कन्नड़ शब्द हम्पे से पड़ा है और हम्पे शब्द तुंगभद्रा नदी के प्राचीन नाम पम्पा से आया था। हम्पी का इतिहास तो वैसे काफी प्राचीन है, लेकिन यहां विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 में दो भाइयों हरिहर राय और बुक्का राय ने की थी। यह काफी कम समय में ही बेहद संपन्न और धनी राज्य बन गया। यह साम्राज्य कृष्णदेव राय के शासन में अपने चरम पर था। बेहद बुद्धिमान तेनालीराम इन्हीं के दरबार में थे। इस साम्राज्य का विस्तार मौजूदा कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के इलाकों तक हो गया था। यह अपनी अकूत संपत्ति, कला, साहित्य, संस्कृति, व्यापार के लिए काफी ख्याति हासिल कर चुका था, लेकिन मुगलों के आक्रमण से विजयनगर साम्राज्य नष्ट हो गया और हम्पीभी खंडहर में तब्दील हो गया।
बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर और बीदर के मुस्लिम राज्यों ने इस राज्य पर धावा बोलने के लिए एक गठजोड़ बना लिया और 1565 की लड़ाई में विजयनगर साम्राज्य बुरी तरह हार गया। उसके बाद मुगलों की सेनाओं ने इस खूबसूरत शहर को बर्बाद कर दिया। इतिहास व वास्तु के खुले संग्रहालय आज हम्पी के खंडहर इतिहास, वास्तुकला और धर्म के विशाल खुले संग्रहालय जैसे हैं। हम्पी में हर साल करीब 15 लाख पर्यटक आते हैं। हम्पी खासकर अपने वास्तुके लिए काफी मशहूर है। किसी ने सच कहा है कि पत्थरों से यदि कोई सपना बने, वह हम्पी जैसा ही होगा। यह पूरा इलाका स्मारकों और पत्थरों के ढांचों से भरा हुआ है, जिनमें 14वीं सदी के दौरान कुशल शिल्पियों द्वारा रचे गए वास्तु की जबर्दस्त खूबी दिखती है। हर स्मारक बेहद खूबसूरत दिखता है।
हम्पी को एशिया में सबसे बड़ा खुले स्मारकों वाला गुम हुआ शहर माना जाता है। विजयवाड़ा राज्य की सात
कतार में किलेबंदी की गई थी। सबसे अंदर की कतार से हम्पी शहर को घेरा गया था। इसके अवशेषों को देखकर
अंदाजा लग जाता है कि आज के 6-7 सौ साल पहले यह शहर कितना भव्य था। यह पूरा इलाका करीब 25 वर्ग
किमी. में फैला हुआ था। हम्पी में विजयनगर युग के सैकड़ों स्मारक देखने लायक हैं। हम्पी का इलाका अनगिनत पत्थरों से भरा हुआ है और इन विशाल पत्थरों के बीच एक आख्यान रचा गया है। स्मारकों
के अलावा, यहां भव्य मंदिर, महलों के तहखाने, प्राचीन बाजार, शाही मंच, दरबार, जलाशय आदि देखने लायक
हैं। पूरे हम्पी में सिंचाई के लिए नहरों का जाल बिछा हुआ था, जो मंदिरों से लेकर महलों तक, टंकियों से लेकर
खेतों तक सब जगह से जुड़े हुए थे।
धार्मिक महत्व भी कम नहीं
हम्पी एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र भी रहा है। मिथकों की बात करें, तो रामायण कथा के अनुसार, भगवान
राम और लक्ष्मण जब मां सीता की तलाश में भटक रहे थे, तो वह किष्किंधा इलाके में वहां के शासक
वानर भाइयों वाली और सुग्रीव की तलाश में पहुंचे थे। इस इलाके का एक प्रख्यात धार्मिक आकर्षण विरुपाक्ष मंदिर भी है, जो विजयनगर के देवता भगवान विरुपाक्ष को समर्पित है। यहां के कम्पा भुपा पथ पर आप
ट्रैकिंग भी कर सकते हैं, जो करीब दो किलोमीटर दूरी तक है। यह ट्रैक रूट हम्पी बाजार से शुरू होकर विट्ठल
मंदिर के पास जाकर खत्म होता है। हम्पी में हर साल नवंबर माह में वार्षिक समारोह मनाया जाता है, जिसे
हम्पी उत्सव या विजय उत्सव कहते हैं। यहां दिवाली का त्योहार भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
पूरा हम्पी घूमने के लिए आपको तीन से चार दिन का समय लेकर चलना चाहिए।