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गोकण्रेश्वर मंदिर: विदेशी भी करते थे शिव पूजन

कुषाण काल द्वितीय सदी में विदेशी भी शिव पूजा में विश्वास रखते थे। इसका पता गोकण्रेश्वर मंदिर में खुदाई में निकले दो हजार वर्ष पुराने शिलापट से चलता है। अब यह शिलापट संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है। फिलहाल यह लोगों को देखने के लिए भी उपलब्ध नहीं है और संग्रहालय के गोदाम में रखा है। अंग्रेजों द्वारा मथुरा में खुदाई कराय

By Edited By: Published: Fri, 16 Aug 2013 01:41 PM (IST)Updated: Fri, 16 Aug 2013 02:19 PM (IST)
गोकण्रेश्वर मंदिर: विदेशी भी करते थे शिव पूजन

मथुरा। कुषाण काल द्वितीय सदी में विदेशी भी शिव पूजा में विश्वास रखते थे। इसका पता गोकण्रेश्वर मंदिर में खुदाई में निकले दो हजार वर्ष पुराने शिलापट से चलता है। अब यह शिलापट संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है। फिलहाल यह लोगों को देखने के लिए भी उपलब्ध नहीं है और संग्रहालय के गोदाम में रखा है।

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अंग्रेजों द्वारा मथुरा में खुदाई करायी जा रही थी। 1936 में गोकण्रेश्वर टीले पर खुदाई के दौरान कुषाणकालीन दो हजार वर्ष पुराना शिलापट मिला। जिस के बीच में शिवलिंग और अगल-बगल विदेशी शक को दिखाया गया है। उन के एक हाथ में पुष्प है और एक हाथ में माला। उसमें वह शिवलिंग का पूजन कर रहे हैं। इससे सिद्ध होता है कि शक जाति के लोग भी शिव का पूजन करते थे। संग्रहालय के पूर्व वीथिका सहायक शत्रुध्न शर्मा बताते हैं कि यह शिलापट लगभग दो हजार वर्ष पुराना है जो अब संग्रहालय के गोदाम में रखा है। इसमें विदेशी शक भगवान शिव का पूजन कर रहे हैं।

धार्मिक महत्व-यह मंदिर एक टीले पर बना है। जिसे गोकण्रेश्वर या कैलाश मंदिर कहा जाता है। इस महादेव को उत्तरीय सीमा का रक्षक माना जाता है। इस मंदिर को भगवान गोकण्रेश्वर को समर्पित किया गया था। जिसके बारे में कहा गया है कि इन्होंने गाय के कान से जन्म लिया था। इस मंदिर में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है।

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